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प्रथम अध्ययन : हिंसा - आश्रव
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प्राणियों को नहीं मारते, हम तो उन्हें मारते हैं, जो मनुष्यों और पशुओं के लिए हानिकारक हैं, या जो उन्हें मार डालते हैं । ऐसे हिंसक जीवों– सिंह, सर्प, व्याघ्र, आदि को मारने में कौन-सा पाप है ? हम तो उन सिंहादि क्रूर प्राणियों को मारकर मनुष्य की रक्षा या सेवा करते हैं। उनसे पूछा जाए, कि यदि हिंसक कहलाने वाले जीव मार डालने योग्य हैं, तब तो आप भी मार डालने योग्य हैं, क्योंकि आप भी उन सिंहादि जीवों कि हिंसा करने के कारण हिंसक ठहरते हैं । वे यह नहीं सोचते, कि इन सिंह आदि हिंसक कहलाने वाले जीवों ने पूर्व जन्म में कृत हिंसा आदि पापकर्मों के कारण ही ऐसी निन्दनीय योनि पाई है, कि वे हिंसा-अहिंसा का विचार नहीं करते । परन्तु हम तो विचारवान हैं, हिंसा-अहिंसा को समझने वाले हैं,
हम उत्तम मानवयोनि पाकर भी ऐसे निन्दनीय कर्म इस योनि में करेंगे, तो हमें भी भविष्य में सिंहादि की योनि ही मिलेगी । परन्तु वे ऐसा विचार कतई नहीं करते, बल्कि सिंह आदि अन्य जन्तुओं को विशेष तरीके से घेर कर मारते हैं, इस कारण प्राणिवध का एक नाम हिंस्रविहिंसा भी है ।
इसके तीसरे रूप का अर्थ — हिंसा पर हिंसा करना होता है । यानी किसी ने किसी पर प्रहार किया तो उस पर उसकी हत्या कर देना हिंसाविहिंसा है । कई लोग कहते हैं— 'जो हमारी हिंसा करता है, उसका जबाब हिंसा से देना तो नीति है ।' परन्तु वास्तव में यह धर्मलक्षी नीति नहीं है । यह तो घातक नीति है । ' शठे शाठ्यं समाचरेत्' इस घातक नीति से कभी सुख और शान्ति नहीं बढ़ती । इससे तो हिंसा - प्रतिहिंसा की ही परम्परा बढ़ती है । हिंसा की प्रतिक्रिया के रूप में प्रतिहिंसा उससे भी भयंकर होती है । इसलिए हिंसा के ही जगद्वन्द्य बने हैं, उनसे ही सुखशान्ति की हिंसा के बदले में प्रतिहिंसा की उन्होंने जगत् में वैर को बढ़ाया ।
बदले में जिन्होंने
प्रेम किया, वे
समस्या हल हुई है
।
परन्तु जिन्होंने इसीलिए हिंसा
विहिंसा पापरूप है ।
इसका अर्थ हिंसा की विहिंसा किया जाय तो प्रश्न होता है, कि हिंसा तो अपने आप में मूर्तरूप (रूपी) न होने से उसकी क्या हिंसा हो सकती है ? इसके उत्तर में ज्ञानीपुरुष कहते हैं, कि यहाँ आशय यही है, कि हिंसा से होने वाली आत्महिंसा भी विहिंसा है । इस प्रकार 'हिंसाविहिंसा' शब्द संगत अर्थ का सूचक है । ५ - अकृत्य — संसार में जितने भी कुकृत्य हैं, है - प्राणिवध है, इसलिए इसे 'अकृत्य' कहा गया है हैं, उन सब में हिंसा छिपी हुई है ।
उन सबमें प्रधान कुकृत्य हिंसा
।
इसी प्रकार जितने भी कुकृत्य
६- घातना - किसी भी प्रकार की चोट पहुँचाना, टक्कर लगाना, उठतेबैठते, चलते-फिरते, किसी चीज को उठाते - रखते असावधानी से किसी जीव को कुचल देना, उसके प्राणों को हानि पहुँचाना, घात करना है । यह भी हिंसा की बहिन है ।