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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
सबका विश्वासपात्र होता है, उसकी शरण में आकर बैठने में किसी को आशंका या भीति नहीं होती ; जबकि हिंसक से सभी प्राणी भयभीत, शंकाकुल और अविश्वासी रहते हैं । इसलिए अहिंसा विश्वास का और हिंसा अविश्वास का कारण है ।
४- हिंस्यविहिंसा - हिंसा विहिंसा - जिनकी हिंसा की जाती है, वे हिंस्य जीव कहलाते हैं, उनकी विशेष हिंसा करना यानी उन्हें बार-बार सताना, पीड़ा देना 'हिंस्यविहिंसा' है । इसी का एक रूप बनता है - 'हिंस्र विहिंसा' । जिसका अर्थ होता है— जो हिंस्र जीव हैं, हिंसक जीव हैं, उनकी विशेष प्रकार से हिंसा करना । इसी का तीसरा रूप होता है— 'हिंसाविहिंसा' ; जिसका अर्थ होता है— हिंसा पर हिंसा करना ; पुन: पुन: हिंसा करना ।
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पहले रूप पर विचार किया जाय तो ऐसा प्रतीत होता है, कि संसार में कोई भी प्राणी हिंस्य नहीं है, किसी दूसरे के द्वारा वध करने योग्य नहीं है । किसी को क्या अधिकार है, कि किसी का प्राण हरण करे या किसी के शरीर का नाश करे ? सभी प्राणी अपने आप में स्वतंत्र हैं । वे अपने ही आयुष्यबल से जीते हैं और अपने आयुष्यबल के नष्ट हो जाने पर मर जाते हैं । वे अपने-अपने शुभाशुभ कर्मों के अनुसार योनि, शरीर, प्राण आदि प्राप्त करते हैं, और उन्हें प्राणप्रण से बचाने और सुख देने की कोशिश करते हैं । किसी को उनके इस कार्य में खलल पहुँचाने का हक नहीं । इसलिए किसी दूसरे प्राणी को हिंस्य मानकर उसकी विशेष प्रकार से हिंसा करना . प्राणिवध ही है । कई लोग यों कहा करते हैं, कि ये बकरे या मछलियाँ आदि जन्तु तो मनुष्य के खाने के लिए ही हैं, ये मैंढ़क तो बरसात के बाद यों ही खत्म हो जायेंगे, इन्हें मारकर खाने में कौन-सा पाप है ? अगर बकरों आदि को नहीं खाया जायेगा, तो ये बढ़ते ही जायेंगे, इन्हें पालना -पोसना और रखना भी दूभर हो जाएगा। परन्तु उन महाशयों से कोई पूछे कि सिंह यदि यह कहे कि ये मनुष्य तो हमारे खाने के लिए ही हैं, तो क्या इसे पसंद करेंगे ? तब तो कहेंगे, कि वह क्या समझता है ? समझदारी के ठेकेदार मांसभक्षी मानव जब दूसरे प्राणी को जिला नहीं सकते, तब उन्हें क्या अधिकार है उन्हें मारने का ? किन्तु ऐसे हठाग्रही कब मानते हैं। वे तो उन पशुओं या जलचरों को अपना भक्ष्य में तल कर या आग में भूनकर विशेष प्रकार से हिंसा करते हैं । लोग सूअरों को पालते हैं और उन्हें ज्यों के त्यों जीवित ही आग की लपटों में झोंक देते हैं । उनकी करुण चित्कार से उनका दिल जरा भी द्रवित नहीं होता । कहने पर वे उत्तर देते हैं, ये तो इसी प्रकार से भूनकर खाने के लिए हैं । इसी को कहते हैंहिंस्य की विशेष प्रकार से — बुरी तरह से हिंसा करना । इस निर्दयता की कोई हद है ! इसके दूसरे रूप का अर्थ हिंस्र अर्थात् हिंसक प्राणियों की विशेष प्रकार से हिंसा करना होता है । कई लोग यों कहते हैं, कि हम बकरे, मछली, सूअर, मृग आदि निर्दोष
मानकर उन्हें
तेल की कड़ाही
कई जगह भंगी
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