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प्रथम अध्ययन : हिंसा-आश्रव
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से क्यों न किया गया हो, हिंसा ही है । कई लोग अपने लिए पुत्र, धन, साधन आदि की प्राप्ति की कामनावश निरापराध मूक प्राणियों के प्राण हरण कर लेते हैं । वे यों कहा करते हैं, कि हमने जिस प्राणी को काली, चण्डी, दुर्गा आदि देवी के आगे चढ़ा दिया, उसे देवी माता स्वर्ग में पहुंचा देगी। जो जगज्जननी माता है, वह मनुष्य के समान बकरे आदि पशुओं की भी माता है । क्या माता अपने ही पुत्रों का भक्षण करेगी ? या अपने सामने उसका वध होते हुए देखेगी ? और फिर दूसरे प्राणियों को मार कर या दुःखी करके पुत्रादि सुख की कामना कैसे फलीभूत हो सकती है ? पर अज्ञान, मोह और स्वार्थ के वश देवी - देवों के नाम पर यह प्राणिवध संसार में भयंकररूप से चल रहा है ।
२ - शरीर से उन्मूलन – जैसे वृक्ष को जड़ से उखाड़ा जाता है, वैसे ही शरीर से जीव को उखाड़ डालना उन्मूलन है । वृक्ष को जड़ से उखाड़ डालने पर वह कभी फलताफूलता नहीं, उसके सब अंग सूखकर खत्म हो जाते हैं, उसी प्रकार शरीर से जीव को उखाड़ने - निकालने पर उसके अंगोपांग भी अपने आप खत्म हो जाते हैं, इन्द्रियाँ, मन, वचन और शरीर आदि सब निश्चेष्ट और निर्जीव होकर पड़ जाते हैं । वे फिर कदापि फलते-फूलते नहीं ।
कई लोग कहा करते हैं, कि आत्मा तो अजर-अमर, अविनाशी और शाश्वत है, उसे शरीर से अलग करने में कौन-सा नुकसान प्राणी को हुआ ? इसके उत्तर में ज्ञानी पुरुषों का कहना है, कि प्रत्येक प्राणी को शरीर और शरीर के आश्रित इन्द्रिय, मन, वचन, श्वासोच्छ्वास, आयुष्य आदि पर ममत्त्व है, उसके शरीर के साथ वह आत्मा बंधी हुई होने से उसके छूटने का तथा उससे छूटने से होने वाली भयंकर हानि (धर्मपालन, परोपकार, पुण्यादि कार्य आदि कुछ भी न होने की हानि ) का अत्यन्त दुःख होता है । यह दुःख उस प्राणी को वैसे ही होता है, जैसे किसी व्यक्ति द्वारा कमाये हुए धन को कोई जबरन छीन झपट या चुरा कर ले जाय तब होता है । इसीलिए शरीर से जीव का उन्मूलन दूसरों के लिए अत्यन्त हानिकारक होने से वर्जनीय है और वह पाप है ।
३ - अवि-अविश्वास — हिंसा करने वाला जीवों के लिए अविश्वसनीय होता है । उसका कोई भी विश्वास नहीं, कि वह कब किसी को मार बैठे, आ दबोचे या अनिष्ट कर डाले । जैसे चूहे बिल्ली का कदापि विश्वास नहीं करते, कि इसके पास जाने पर यह हमें प्यार से पुचकारेगी या मारेगी नहीं, वैसे ही संसार में हिंसक प्राणी के प्रति मनुष्य ही क्या, कोई भी प्राणी विश्वास नहीं करता । हिंसक की आकृति ही प्राणी पहिचान लेते हैं और उसके पास जाने से हिचकते हैं । इसलिए हिंसक व्यक्ति के द्वारा की जाने वाली हिंसा प्राणियों में अविश्वास, शंका, भय और संकोच पैदा करने वाली होने से इसे अंविस्रभ या अविश्वास कहा गया है । वास्तव में अहिंसक