Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
करना
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उत्कृष्ट सेवक
साध्वी श्री रतनकंवर (लाडनू) श्रावक श्री केसरीमलजी ने 'जिनशासन' की जो पर नाचते देखे जाते हैं, लेकिन आपके चरणों की सेवा सेवाएँ की हैं और वर्तमान में कर रहे हैं, वे इतिहास के देव भी नहीं कर सकते। वैराग्य-शतक में भर्तृहरि ने पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में लिखने योग्य हैं । उनका त्यागमय कहाजीवन किस सज्जन का दिल नहीं लुभाता? वे व्यक्ति नहीं “सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्यः' अपने आप में एक सुदृढ़ संस्था हैं।
सेवाधर्म योगी जनों के लिए भी अगम्य कहा है । सेवा मेरा इनसे ज्यादा सम्पर्क नहीं रहा किन्तु विक्रम संवत् का फल त्यागमय पानी से पल्लवित होता है। अत: आज २०१४ का चातुर्मास करने के लिए मैं उदयपुर जा रही थी, उनके हाथों से लगायी हुई ज्ञानवाटिका कितनी प्रफुल्लित तब राणावास में उनके मकान में ठहरना हुआ। उन्होंने दीख रही है। इनकी उत्कृष्ट सेवा का यही ज्वलन्त मेरी सेवा की, तब निकट से परखने का मौका मिला। उदाहरण है। उनसे वार्तालाप करके मैं आत्म-विभोर हो गयी । त्यागमय आज के युग में सेवा के नाम पर अपना घर भरने जीवन देखकर मेरे याश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा । इतना वाले आपको बहुत मिलेंगे किन्तु अपने स्वार्थों का परित्याग सेवामय जीवन बिना त्याग नहीं हो सकता। वास्तव में करने वाले विरले ही व्यक्ति होते हैं। उनमें श्री सेवा त्याग माँगती है । अध्यात्म-योगी आनन्दघन चौदहवें केसरीमलजी सुराणा का नाम शीर्षस्थ रहेगा। जब मैंने तीर्थकर अनन्तनाथजी की स्तुति करते हुए कह रहे हैं- राणावास-छात्रावास का अथ से इति तक वृत्तान्त सुना धार तरवारनी सोहली,
तब मेरे मन में सहसा आया कि मदन मोहन मालवीयजी दोहली चवदमा जिन तणी चरण सेवा । की कृति हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस और केसरीमलजी धार पर देखिए नाच बाजीगरा, सुराणा की कृति छात्रावास, राणावास में परस्पर बहुत
चरणनी सेव पर रहे न देवा ॥ साम्य है। दोनों व्यक्तियों का जीवन त्याग की अग्नि में तलवार की धार पर चलना सहज है, किन्तु सेवाव्रत तपा हुआ सोना है। पर चलना कठिन है। बाजीगर तलवार की तीक्ष्ण-धार
जागरूक साधक
- मुनि श्री सोहनलाल (राजगढ़) भगवान् महावीर ने कहा है
उसी जागरणमूलक साधना में संलग्न हैं। वे सत्यवादी जय चरे जयं चिट्ठे, जयं मासे जयं सए। धर्मनिष्ठ एवं दृढ़ संकल्पी हैं। वे माया, ममता रहित सुलझे
जयं भुजन्तो भासन्तो, पावकम्म न बन्धइ॥ हुए विचारों के धनी हैं तथा धर्म संस्कार एवं विद्या के साधक जागरूकता से दैनिक जीवनचर्या का पालन प्रचार में संलग्न हैं। करता हुआ पापों से लिप्त नहीं होता। केसरीमलजी भी
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