Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्य खण्ड
१३. अव्यत्यानंडित
१४. प्रतिपूर्ण १५. प्रतिपूर्णघोष
१६. कण्ठोष्ठविप्रमुक्त । आगम पाठ को शुद्ध, स्थिर और यथावत् बनाये रखने का कार्य उपाध्याय का है, वस्तुत: उपाध्यायश्री को सूत्र-वाचना देने में कितना प्रयत्नशील और जागरूक रहना होता है, यह उक्त-विवरण से सुस्पष्ट हो जाता है। आलंकारिक भाषा में यों भी कहा जा सकता है कि उपाध्याय श्रमगसंव-रूपी नन्दनवन के ज्ञान-विज्ञान रूप वृक्षों की शुद्धता एवं विकास की ओर सदा जागरूक रहने वाला एक उद्यानपालक है, कुशल माली है।
जैन साहित्य में उपाध्याय के २५ गुणों का प्रतिपादन मिलता है । उपाध्याय इन गुणों से युक्त हो, यह अपेक्षित है। उपाध्याय जैसे गौरवपूर्ण पद पर कौन प्रतिष्ठित हो सकता है, उसकी क्या योग्यता होनी चाहिए। यह भी एक गम्भीर प्रश्न है। क्योंकि इस पद पर आरूढ़ करने से पूर्व उस व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और शैक्षिकयोग्यता की परीक्षा को कसौटी पर कसा जाता है। यदि कोई व्यक्ति इस पद के लिये अयोग्य है और वह इस पर आसीन हो जाता है तो वह इस पद का और शासन का भी गौरव घटायेगा ही, मलिन कर देगा। इसीलिये जैन मनीषी-चिन्तकों ने उपाध्याय की योग्यता के विषय में बहुत ही गम्भीरता के साथ विचार-चिन्तन किया है।
जो श्रमण कम से कम तीन वर्ष का दीक्षित हो, आचारकल्प अर्थात् आचारांग सूत्र व निशीथ का ज्ञाता हो, आचार-निष्ठ एवं स्व-समय और पर-समय का ज्ञाता हो एवं व्यंजनजात हो । दीक्षा और ज्ञान की यह न्यूनतम योग्यता का जिस व्यक्ति में अभाव होता है वह उपाध्याय के महत्त्वपूर्ण पद पर आसीन नहीं हो सकता।
इसके अतिरिक्त वह श्रमण २५ गुणों से युक्त होना भी अतीव आवश्यक है। पच्चीस गुणों की गणना में दो प्रकार की पद्धति दृष्टिगोचर होती है। पच्चीस गुणों की प्रथम पद्धति इस प्रकार मिलती है। ११ अंग, १२ उपांग, १ करणगुण, १ चरणगुण=२५ ।
ग्यारह अंगों के नाम इस प्रकार हैं१. आचारांग
२. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग
४. समवायांग ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति
६. ज्ञाताधर्मकथा उपासकदशा
८. अन्तगडदशा ६. अणुत्तरोववाइयदशा
१०. प्रश्नव्याकरण ११. विपाकश्रुत बारह उपांगों के नाम इस प्रकार हैं१. औपपातिक
२. राजप्रश्नीय ३. जीवाभिगम
४. प्रज्ञापना जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति
६. सूर्यप्रज्ञप्ति ७. चन्द्रप्रज्ञप्ति
८. निरयावलिया ६. कप्पिया
१०. कप्पवडं सिया ११. पुफिया
१२. पुष्पचूलिका
१. व्यवहारसूत्र ३३, ७१९, १०॥२६. २. जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, भाग ६, पृष्ठ २१५.
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