Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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तेरापंथ का राजस्थानी गद्य साहित्य
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मांचो आण छाया कीधी । संथारी कराय दीयो । थोडी वैला थी दिनरा ईज आउखौ पूरी कीयो । परिणाम घणा सैठा रह्या, इसा उत्तम पुरुष ।'
-(दृष्टान्त ३६) निम्न गद्यांश में तात्कालिक परम्पराओं का उल्लेख ही नहीं, उस समय में प्रचलित शब्दों का कितना सुन्दर समावेश हुआ है
'विजेचंद पाटवी पाली मैं लोकाचरीयौ गयो । एक मोटी लोटी भरन सिनान करै, जद वावेचा बौल्या-विजेचंद भाई तुम्हें ढूंढिया सो पाणीमें पैसनै सिनान पिण न करौ जद विजचंदजी बोल्याहूँ थाने भरभोलीयां री माला समान जाणू छु । होलीरा दिनां मैं छोहरीयां भरमोलीया करै-औ म्हार खोपरो, औ म्हार नालेर इम नाम दीया पिण है गौबर नो गौबर । ज्यू थै मनख जमारौ पाया पिण दया धर्मरी ओलखाण बिणा पसू सरीखा हो।'
कथा-कोष-श्रीमज्जयाचार्य एक असाधारण वक्ता थे। वक्तृत्व के लिए बहुविध सामग्री की अपेक्षा होती है। उसमें छन्द, कवित्त, श्लोक. कथा आदि-आदि की उपयुक्तता होने पर वह और प्रभावशाली हो जाता है।
सफल वक्ता वही होता है जो भिन्न-भिन्न रुचि वाले श्रोताओं को मनोनुकूल सामग्री से परितुष्ट कर सके । श्री मज्जयाचार्य के समय में अनेक साधु अपने वक्तृत्व-कौशल के लिए प्रसिद्ध थे, किन्तु साध्वियाँ अभी उस ओर प्रस्थित ही हुई थीं। श्रीमज्जयाचार्य ने उनको इस कला में प्रशिक्षित करने के लिए एक ऐसा संकलन तैयार किया जिसमें वक्ता के लिए उपयोगी सभी छोटे-बड़े तथ्य संकलित थे। इस ग्रन्थ का नाम 'उपदेश-रत्न-कथा-कोष' रखा। इसमें लगभग १०८ विषयों पर कथाएँ, दोहे, गीतिकाएँ आदि का सकलन है। इसमें कथा-भाग अधिक है लगभग दो हजार कथाएँ हैं । प्रत्येक विषय से सम्बन्धित कथाओं के साथ-साथ गीतिकाएँ और अन्यान्य सामग्री भी है । इसका ग्रन्थमान लगभग छासठ हजार पद्य परिमाण है । यह संकलन समय-समय पर किया गया था। इसमें लोक-कथाओं का भी संग्रह हुआ है । इसमें प्रयुक्त शब्द तथा मुहावरे ठेठ राजस्थानी भाषा की समृद्धि की याद दिलाते हैं। यह राजस्थानी भाषा का विशाल गद्य-ग्रन्थ है। इसमें मुगल साम्राज्य से सम्बन्धित कुछ घटनाएँ हैं तो कुछ घटनाएँ अंग्रेजी सल्तनत से सम्बन्धित भी हैं। राजा-महाराजाओं की कुछ घटनाएँ भी संग्रहीत हैं। इसके सम्पादन और प्रकाशन से इतिहास की कई नई बातें सामने आ सकेंगी-ऐसी आशा की जा सकती है। इस ग्रन्थ में संकलित कथाओं का सम्पादन हो रहा है। उदाहरणस्वरूप दो-चार कथाएँ प्रस्तुत करना अप्रासंगिक नहीं होगा
(१) अनरगल मूठ-एक सैहर में चार बाहिला भाई रहै। ते चारूँई गप्पी, कितोली। माहोमा हेत घणा । चारां मैं एक तो आंधो, दूजो बोलो, तीजो पांगलो, चौथा नागो। ए च्यारूं ही झूठा बोला । ठाला बैठा झूठी-झूठी बातां करें।
एक दिन आंधो बोल्यो-भाइजी ! उण डूंगर ऊपर किडी चालै; हूँ देखू । थांन दीसे है के ? जद दूज्यो बोल्यो-कोडी दीसवारी बात छोड़ । कीडी चालती रा पग बाज, तिण रा शब्द हुंइ सुणूं हुँ। जद पांगलो बोल्यो-चालो देखां ।
जद चौथो नागो बोल्यो-चाला तो सरी पण खतरो है। चोर म्हारा कपड़ा खोस लेसी तो कांइ करतूं। सीयाले सीयां मरसू, लोकां में लाज जासी।'
आ बात सुणनै लोक बोल्या-धत् । चारूंई झूठा बोला। किण नै दीसे, कुण सुने, कुण चाल, किण रै कपड़ा सो खोस लेसी नै लाज जासी।
त्यांरी पेठ गई । इम जाण अनरगल झूठ, कितोल न करणी।
(२) पीजारो-एक पीजारो रूई पीजवा लागो । बेटा रो नाम जमालो। जमालो रूई चोर-चार ने कोठी में घाले । रूई थोडी हुंती । जद पीजारो बोल्यो
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