Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षण्ठ खण्ड
उस समय गुजरात का नाम गुजरात नहीं था। राजस्थान के नागौर, डीडवाना, मण्डीर, भीनमाल आदि प्रदेश को प्राचीन लेखों में गुजरात के अन्तर्गत माना जाता है ।
कुवलयमाला की प्रशस्ति में ऊपर उद्धृत श्लोक से पहले यक्षदत्त के गुरु शिवचन्द्र गणि महत्तर के लिये लिखा है कि जिन वन्दन के लिए घूमते हुए वे भीनमाल नगर में रहे, अर्थात् ८वीं शताब्दी से पहले भी भीनमाल में जैन मन्दिर थे ।
संवत १५ में नागौर में भोजदेव के राज्य में रचित 'धर्मोपदेश मालावृत्ति की प्रशस्ति में लिखा है कि यक्ष महत्तर ने खट्टऊवय ( खाटू) में जैन मन्दिर बनवाया। कुमारपाल चरित्र' के अनुसार यह मन्दिर नारायण सेठ ने ७१६ में महावीर भगवान का बनवाया था। धर्मोपदेशमाला प्रशस्ति की गाथाएँ नीचे उद्धृत की जा रही हैं
कोए वियाणी जिणमंदिराणि नेगाणि जेण गच्छाण । देसेसु बहुविहेसु चउहिसिर संघ जत्ताणि ॥ नगरे सयं वुच्छो, युत्त वा जाव गुज्जरत्ताए । नागउराह जिणमंदिराणि जायाणि जेयाणि ।। विविध तीर्थ कल्प के अनुसार सांचोर का महावीर मन्दिर वीर मूर्ति स्थापित की थी जिसकी प्रतिष्ठा
मंदिर बना था ।
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संवत् ६०० में बनाकर पीतल की महावीर करने की थी अर्थात् विक्रम संवत् १३० में सांचोर का महावीर
राजस्थान के जैन मन्दिर और मूर्तियों की कला का अध्ययन दवीं शताब्दी से तो विधिवत् किया जा सकता है। वीं शताब्दी की जो पीतल की मूर्तियां बंसतगढ़ आदि से मिली हैं, वे गुप्तकालीन जैन कला का प्रतिनिधित्व करती हैं। उसी समय की एक भव्य धातु-मूर्ति बीकानेर के चितामणिजी के मंदिर में भी है जो अभी सुरक्षा की दृष्टि से बैंक के लोकर्स में रखी हुई है।
अकबर द्वारा सम्मानित राजस्थान के महाकवि समयसुन्दर ने सं० १६६२ में गंगाजी तीर्थ स्तवन बनाया है जिसमें मंडोर देश के गाँधीजी के चुघेला तालाब के खोकर नायक मंदिर के पीछे भुंवरि में जो मूर्तियाँ संवत् १६६२ के जेठ सुदी ११ को प्रकट हुई उन ६५ प्रतिमाओं का विवरण देते हुए लिखा है कि वीर संवत् २०३ में आर्य सुहस्तिरि द्वारा माघ सुदी को प्रतिष्ठित और संप्रति राजा कारित श्वेत सेना की प्रतिमा मिली है और वर सं० १७० में चन्द्रगुप्त कारित और भद्रबाहु प्रतिष्ठित प्रतिमा मिली है । समयसुन्दर के दिये हुए विवरण का आवश्यक अंश नीचे दिया जा रहा है :
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प्रगटचऊ खरउ भूइरउ किण माँहि प्रतिमा चली । जेठ सुदी ११ सोलह व्यसढ़ विस प्रकट चउ मन रली ॥ जैसे तिडीतर वीरथी, संवत् प्रबल प्रष्टर । पद्म प्रभु प्रतिष्ठियां, आर्य सुहस्ती सूरि ॥ माह ती सुदि आठमी, शुभ मुहरत विचार । ए लिपि प्रतिमा पूढे लिखी, ते यांची सुविचार ॥ ८ ॥ अर्जुन पास जुहारियर, अर्जुन पुरि सिणगारो जी। तीर्थंकर तेवीसयउ मुक्ति तणउ चन्द्रगुप्त राजा थयउ, चाणिक्यइ दीघउ तिण ए बिंबभरावियउ सारचा उत्तम कांजी जी ।। ३अ० ॥ महावीर संवत् थकी बरस, सत्तर सउ वीतो जी । तिण समै चवद पूरव धरू, श्रुत केवली सुविदीतो जी ॥ ४ ॥
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दातारो जी ॥ २अ० ॥ राजो जी ।
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