Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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मेवाड़ की प्राचीन जैन चित्रांकन-परम्परा
१७७. .
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आकृतियाँ एक चश्मी न ही हैं, नहीं इनमें अपभ्रंश शैली जैसे वस्त्र हैं । अतः यह मानना होगा कि यह वहाँ की स्थानीय शैली के अनुरूप साधुओं की आकृतियाँ रही होंगी।
अलाउद्दीन के आक्रमण के पश्चात् उत्तरी भारत में जो विकास हुआ, उनमें गुजरात व मालवा के नये राज्यों की स्थापना उल्लेखनीय है । जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, मेवाड़ के शासक भी अलाउद्दीन के आक्रमण के बाद अधिक शक्तिसम्पन्न हुए। महाराणा लाखा, मोकल एवं कुम्भा का काल आन्तरिक शान्ति का काल था। इस काल में कई महत्त्वपूर्ण कलाकृतियों का निर्माण हुआ । मेवाड़ की चित्रकला का दूसरा सचित्र ग्रंथ कल्पसूत्र वि० सं० १४७५ (१४१८ ई०) है, जो सोमेश्वर ग्राम गोड़वाड़ में अंकित किया गया। यह ग्रंथ अनूप संस्कृत लाइब्रेरी, बीकानेर में सुरक्षित है । ७६ पत्रों की इस प्रति में ७३ पत्रों तक तो कल्पसूत्र एवं कालिकाचार्य कथा ८८ श्लोकों की है। इस कथा में ३ चित्र हैं। कल्पसूत्र के १६ पृष्ठों पर चित्र हैं। इनमें से पत्रांक 8 और ३२ के बोर्डर पर भी लघु चित्र हैं । पत्रांक २६ में दो चित्र है । चित्रों की पृष्ठभूमि में लाल, हल्दिया, बैंगनी व मंगे रंग का प्रयोग है तथा ग्रन्थ के अन्त में लिखी पुष्पिका से तत्कालीन कला-परम्परा की भी उचित पुष्टि होती है। ज्ञातव्य है कि उस काल में गोड़वाड़ मेवाड़ का ही भाग था, जो महाराणा अरिसिंह (१७६१-१७७३) ई० के राज्यकाल में मारवाड़ को दे दिया गया। इसके अन्तिम लेख से स्पष्ट है कि जैसलमेर में जयसुन्दर शिष्य तिलकरंग की पंचमी तप के उद्यापन में यह प्रति भेंट की गई थी।
मेवाड़ की चित्रकला का अन्य सचित्र ग्रंथ महाराणा मोकल के राज्यकाल (१४२१-१४३३ ई०) का देलवाड़ा में चित्रित सुपासनाहचरिय वि० सं १४८० है। यह ग्रंथ सैंतीस चित्रों का एक अनुपम चित्र सम्पुट है जो पाटण के संग्रहालय में सुरक्षित है। यह ग्रंथ देलवाड़ा में मुनि हीरानन्द द्वारा अंकित किया गया। मुनि हीरानन्द द्वारा चित्रित यह ग्रंथ मेवाड़ की चित्रण-परम्परा में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, जो इससे पूर्व श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रचूणि की कलात्मक विशेषताओं से एक कदम आगे है। इनके द्वारा पृष्ठभूमि का अंकन हीगलू के लाल रंग से किया गया है। स्त्रियों का लंहगा नीला, कंचुकी हरी, ओढ़नी हल्के गुलाबी रंग से तथा जैन साधुओं के परिधान श्वेत और पात्र श्याम रंग में हैं। देलवाड़ा में ही महाराणा मोकल के राज्यकाल का एक अन्य सचित्र ग्रंथ 'ज्ञानार्णव' वि० सं० १४८५ (१४२७ ई.) नेमिनाथ मन्दिर में लिखा गया दिगम्बर जैन ग्रंथ है। यह लालभाई दलपतभाई ज्ञान भण्डार अहमदाबाद में सुरक्षित है।
इस भूखण्ड का एक और सचित्र ग्रंथ रसिकाष्टक वि० सं० १४६२ हैं, जो महाराणा कुम्भा के राज्यकाल का एक उल्लेखनीय ग्रंथ है। रसिकाष्टक नामक ग्रंथ भीखम द्वारा अंकित किया गया था जो पूष्पिका से भी स्पष्ट है। इस
१. संवत् १४७५ वर्षे चैत्र सुदि प्रतिपदा तिथी। निशानाथ दिने श्रीमत मेदपाट देशे सोमेश्वर ग्रामे अश्विनी नक्षत्रे
मेष राशि स्थिते चन्द्र । विषकायोगे श्रीमत् चित्रावाल गच्छे श्री वीरेचन्द्रसूरि शिष्येण धनसारेणकल्प पुस्तिका आत्मवाचनार्थ लिखापित लिषिता, वाचनाचार्येण शीलसुन्दरेण श्री श्री श्री शुभं भवतु।
--अगरचन्द नाहटा, आकृति (रा० ल० अं०) जुलाई १६७६, वर्ष ११, अंक १, पृ० ११-१४ २. मुनि श्री विजयवल्लभसूरि स्मारक स्मृति ग्रंथ, बम्बई १९५६, पृ० १७६-संवत् १४८० वर्षे शाके १३४५ प्रवर्त
माने ज्येष्ठ वदि १० शुक्र ववकरणे मेदपाट देशे देवकुलवाटके राजाधिराज राणा मोकल विजय राज्ये श्रीमद्ब्रहदगच्छे मड्डाहडीय भट्टारक श्री हरिभद्रसूरि परिवार भूषण पं० भावचन्द्रस्य शिष्य लेशेन मुनि हीराणंदेन लिलिखेरे।
-साराभाई मणिलाल नबाब अहमदाबाद, जैन चित्र कल्पद्रुम, १६५८, पृ० ३०. ३. संवत् १४८५ वर्षे निज प्रताप प्रभाव पराकृत तरण तरणी मंडलात श्री महाराजाधिराज मोकलदेव राज्य प्रवर्तमान नां श्री देवकुल वाटके।
-ला० द० ज्ञ० भ० अहमदाबाद । ४. संवत् १४६२ वर्षे आषाढ़ सुदि गुरौ श्री मेदपाटे देशे श्री पं० भीकमचन्द रचित चित्र रसिकाष्टक समाप्त
श्री कुम्भकर्ण आदेशात् ।"
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