Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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नागौर के जैन मन्दिर और दादावाड़ी
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का संघ निकाला जिसमें अनेक देश-ग्रामों के संघ को आमन्त्रित किया गया था। इसमें आचार्यश्री जयदेवगणि, पद्मकीर्तिगणि, अमृतचन्द्रगणि आदि ८ साधु और जयदि महत्तरा आदि चतुर्विध संघ ने देवालय के साथ बड़े ठाठ से प्रयाण किया था।
सं० १३८० में दिल्ली के सेठ रयपति के संघ में नागौर के सेठ लखमसिंह आदि संघ सहित विशाल यात्रीसंघ में सम्मिलित हुआ था।
श्री जिनकुशलसूरिजी के शिष्य और जिनपद्मसूरिजी के पट्टधर श्री जिनलब्धिसूरिजी, जो सिद्धान्तज्ञ-शिरोमणि और अष्टावधानी थे, सं० १४०६ में आपका नागौर में ही स्वर्गवास हुआ था जिसके पट्ट पर सं० १४०६ माघ सुदि १० के दिन नागौर निवासी श्री मालवंशीय राखेचा साह हाथी कारित उत्सवपूर्वक जेसलमेर में श्री जिनचन्द्रसूरिजी विराजमान हुए। आपके पट्टधर श्री जिनोदयसूरिजी के विज्ञप्ति-महालेख के अनुसार नागौर से दो लेख लोकहिताचार्य को अयोध्या भेजे थे जिनमें नागौर में मोहन श्रावक द्वारा मालारोपण उत्सव करवाये जाने का उल्लेख किया गया था।
श्री जिनभद्रसूरि अपने समय के एक महान् प्रभावक आचार्य थे। उन्होंने सात स्थानों में ज्ञान-भण्डार स्थापित किये थे जिसमें कितने ही प्राचीन और नवीन ग्रन्थों को लिखवाकर रखा गया था। नागौर में भी ज्ञान-भण्डार स्थापित करने के उल्लेख पाये जाते हैं।
युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिजी महाराज सं० १६२२ में बीकानेर से जेसलमेर जाते हुए नागौर पधारे । उन दिनों संभवत: नागौर मुगलों के अधिकार में था और वहाँ का शासक हसनकुलीखान था जिसके साथ बीकानेर के मंत्री संग्रामसिंह वच्छावत ने संधि की थी। जिनचन्द्रसूरि विहार पत्र के उल्लेखानुसार हसनकुलीखान द्वारा प्रवेशोत्सव कराने का 'बिचि नागौर हसनकुलीखान जय लाभपइसार' लिखा है।
___सं० १६२३ मिती माघ बदि ५ को नागौर दादाबाड़ी में श्री जिनकुशलसूरिजी के चरण पादुके प्रतिष्ठित कराये गये थे। सं० १६४७ में सम्राट के आमन्त्रण से खंभात से लाहौर जाते हुए युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिजी नागौर पाधारे थे। यहाँ के मन्त्रीश्वर मेहा ने बड़ी धूमधाम के साथ सूरिजी का प्रवेशोत्सव कराया था और गुरुमहाराज को वन्दनार्थ बीकानेर का संघ आया जिसके साथ ३०० सिजवाला और ४०० वाहन थे। वह संघ स्वधर्मीवात्सल्यादि करके वापस लौटा। श्री जिनचन्द्रसूरि अकबर प्रतिबोधरास का आवश्यक अंश यहाँ दिया जा रहा है
हिव नगर नागोरउरई आया श्री गच्छराज। वाजिन बहु हय गय मेली श्रीसंघ साज ॥ आवी पद वंदी करइ हम उत्तम काज । जउपूज्य पधार्या तउसरिया सब काज ।।७।। मन्त्रीसर वांदइ मेहइ मन नइ रंग। पइसारउ सारउ कीधउ अति उछरंग ।। गुरु दरसण देखी वधियो हर्षकलोल। महियलिजस व्यापिउ आपिउ वर तंबोल ॥७६।। गुरु आगम ततखिण प्रगटिउ पुण्य पडूर । संघ बीकानेरउ आविउ संघ सनूर ।। त्रिणसउ सिजवाला प्रवहण सई वालि चार ।
धन खरचइ भवियण भावइवर नर नारि ॥७७।। समयसुन्दरजी महाराज स्वयं नागौर में विचरे हैं और यहीं पर सं० १६८२ में सुप्रसिद्ध शत्रुजयरास की रचना
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