Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड
है-दक्षिण में जैनों के प्रति तथाकथित धार्मिकों के द्वारा अत्यन्त करुणाजनक और हिंसाजनक किया गया अत्याचार । हम कल्पना नहीं कर सकते कि एक धार्मिक दूसरे धार्मिक के प्रति इतना हिंसक बन सकता है। धर्म के नाम पर क्या नहीं किया जा सकता ? यहाँ की घटनाओं से स्पष्ट हो जाता है। मन नहीं चाहता है कि ऐसी घटनाओं का विस्तार से उल्लेख किया जाय । किसी घटना को लेकर सैकड़ों जैन संतों को, लाखों जैनी भाइयों को मौत के घाट उतारा गया। कोल्हू में पीला गया । कड़ाहों में तला गया। हिंसा चरम सीमा पर पहुंची। उस हिंसा के तूफान में अनेकों मरे । अनेकों शैव-धर्मी बने और अनेकों ने छद्मवेष धारण किया और अनेक भव्य जैन मन्दिर शिव मन्दिर में परिणत हो गए।
आज दक्षिण के जैनों की संख्या बहुत कम और सामान्य स्थिति में है। प्रायः खेतीकर लोग है । आज वे नाईनार से पुकारे जाते हैं । जैन धर्म के संस्कारों में आज भी वे सुदृढ़ हैं । अपनी संस्कृति को सुरक्षित रखने के लिए वे लोग अपनी संतानों के नाम तीर्थकर और प्राचीन आचार्यों के नाम पर रखते हैं । रात्रिभोजन वे लोग नहीं करते। सुनने को यहाँ तक मिलता है कि माताएँ अपने बच्चे को रात्रि में स्तनपान भी नहीं करातीं।
तमिलनाडु में जैन संस्कृति का प्रभाव आज भी जनमानस पर छाया हुआ है। इसका पता बहुत आसानी से लग सकता है । यहाँ के पहनाव को देखने से ऐसा लगता है कि यहाँ जैन संतों की सचेलक और अचेलक दोनों प्रकार की साधना चलती थी। यहाँ के स्थानीय लोग विवाह दिन में करते हैं । रात्रि में विवाह करने वाले मारवाड़ियों को कहते हैं कि यह चोर विवाह है। यह जैनों के लिए चिन्तन का विषय है। जैनों की पहचान के यहाँ दो प्रमुख कारण मानते हैं-रात्रि-भोजन न करना और अनछाना पानी न पीना।
दक्षिण की यात्रा के प्रसंग में आचार्य श्री से राजगोपालाचार्य ने कहा था-'यहाँ के जनमानस में जैन धर्म के संस्कार हैं । यहाँ लोग फूल को नहीं बीघते । यह जैनों की अहिंसा का ही प्रभाव है। मैं निरामिष-भोजी हूँ। यह जैन धर्म की ही देन है; नहीं तो मांसाहारी होता' ।
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