Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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(१०) मेहता बन्धु मेहता अगरचन्द के पौत्र मेहता देवीचन्द को महाराणा भीमसिंह ने प्रधान बनाया । "मेहता रामसिंह को अंग्रेज सरकार की सलाह पर महाराणा भीमसिंह ने प्रधान नियुक्त किया। मेहता शेरसिंह को पहले महाराणा भीमसिंह ने एवं बाद में महाराणा स्वरूपसिंह ने प्रधान नियुक्त किया। शेरसिंह के बाद महाराणा स्वरूपसिंह ने मेहता गोकुलचन्द को प्रधान नियुक्त किया। महाराणा स्वरूपसिंह द्वारा कोठारी केसरीसिंह को प्रधान नियुक्त करने के बाद महाराणा शम्भूसिंह के समय मेहता पन्नालाल प्रधान नियुक्त किया गया और कोठारी बलवन्तसिंह द्वारा त्यागपत्र देने के बाद महाराणा फतहसिंह ने मेहता भोपालसिंह को प्रधान नियुक्त किया तथा अन्तिम महाराणा भूपालसिंह के समय मेहता फतहलाल मेवाड़ राज्य का प्रधान रहा।
किलेवार एवं फौज वक्षो
मेहता जालसी द्वारा मेवाड़ राज्य पर महाराणा वंश की प्रतिष्ठा करने के बाद इसी वंश का मेहता चीलसी महाराणा सांगा, मनवीर व महाराणा उदयसिंह के समय मेवाद को इतिहासप्रसिद्ध राजधानी वित्तोडगढ़ का किलेदार एवं फौजबक्षी रहा तथा मेहता मालदास महाराणा भीमसिंह के समय तथा बाद में मेहता श्रीनाथजी मेवाड़ के प्रमुख सामरिक किलों के किलेदार व फोजबली रहे। इसके अतिरिक्त बोलिया स्वमान में सरदारसिंह भी किलेदार व फौजबली रहे।
मेवाड़ के जैन वीर १४३
इस प्रकार हम देखते हैं कि रावल राजवंश के अन्तिम शासक रत्नसिंह के समय से राणावंश के प्रथम शासक हमीर से लेकर अन्तिम शासक महाराणा भूपाल तक मेवाड़ के वीर शासकों ने विश्व के इतिहास में अपना जो गौरवशाली स्थान बनाया, उसमें जैन वीरों, आमात्यों व प्रशासकों का भी समांतर योगदान रहा। इन जैन वीरों ने अपने ऐतिहासिक कृतित्व-व्यक्तित्व से न केवल राजमुखापेक्षी ऐतिहासिक परम्परा में जननायकों की भूमिका का ही सूत्रपात किया है अपितु इस सत्य तथ्य की भी प्रतिष्ठा की है कि बिना जननायकों के योगदान के किसी क्षेत्र का इतिहास और उसके ऐतिहासिक शासक मात्र अपने बलबूते पर ही गौरव महिमा का अर्जन नहीं कर सकते अपितु इसके पीछे अनेक जन प्रतिनिधियों का त्याग और बलिदान भी संलग्न रहता है ।
इन जननायक जैन वीरों ने अपने साहस, बलिदान, त्याग और प्रशासन से न केवल राजनैतिक स्तर पर ही अपने सेवा पदों का प्रतिनिधित्व किया अपितु ये सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक क्षेत्रों के भी अग्रगण्य नेता थे और इन्होंने अपने कार्यकाल में मेवाड़ की गली सामाजिकता, स्वतन्त्रता संयन्मुख आर्थिक दशा और सहिष्णुता प्रधान धार्मिक स्थितियों का निर्माण किया जिससे मेवाड़ विभिन्न धर्मो व संस्कृतियों के धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का केन्द्र-स्थल बनकर भारतीय इतिहास में विशेषरूप से गौरवान्वित हुआ।
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