Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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जैन मूर्तिकला की परम्परा
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प्रतिमाओं का भी उल्लेख किया है।' इन प्रतिमाओं में जीवन्तस्वामी को कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ा और वस्त्राभूषणों (मुकुट, हार, मेखला, वनमाला, बाजूबन्द आदि) से सज्जित दर्शाया गया है। पहली मूर्ति ल. पांचवीं शती ई० की है और दूसरी लेखयुक्त मूति ल० छठी शती ई० की है। दूसरी मूर्ति के लेख में जीवन्तस्वामी खुदा है ।
उपर्युक्त मूतियों के बाद भी जीवन्तस्वामी मूर्तियों के निर्माण का क्रम चलता रहा। यह उल्लेख केवल
श्वेताम्बर परम्परा में हुआ है और जीवन्तस्वामी मूर्तियां भी केवल श्वेताम्बर स्थलों से ही मिली है। संभवतः जीवन्तस्वामी के वस्त्राभूषणों से युक्त होने के कारण ही दिगम्बर परम्परा में इनका अनुल्लेख है । दसवीं से बारहवीं शती ई. के मध्य की अधिकांश जीवन्तस्वामी-मूर्तियाँ राजस्थान के श्वेताम्बर स्थलों में मिली है। ये मतियाँ राजस्थान के जोधपुर जिले में ओसिया और सेवाणी स्थित जैन मन्दिरों पर उत्कीर्ण हैं (देखें चित्र)। बारहवीं शती ई० को एक मनोज्ञ मूति सरदार संग्रहालय, जोधपुर में है। प्रतिमालक्षण की दृष्टि से जीवन्तस्वामी की सर्वाधिक महत्वपूर्ण मूर्तियाँ ओसियां और सरदार संग्रहालय, जोधपुर (१०वी-१२वीं शती ई.) की हैं। इन मूर्तियों में जीवन्तस्वामी के साथ तीर्थकर मूर्तियों की कई विशेषताएँ प्रणित हैं । इन मतियों में जीवन्तस्वामी के साथ अष्टप्रातिहार्य (चामरधर सेवक, विछत्र, भामण्डल, देवदुन्दुभि, सुरपुष्पवृष्टि आदि), यथापक्षी युगल, महाविद्याएँ एवं जिन-आकृतियां निरूपित हैं, जो मध्ययुगीन जिन-मूतियों की सामान्य विशेषताएँ रही हैं।
जैन धर्म में मूति-निर्माण एवं पूजन की ओसियाँ (राजस्थान) के महावीर मन्दिर के तोरण प्राचीनता के निर्धारण के लिए जीवन्तस्वामी मूर्ति की
(१०१६ ई०) की जीवन्तस्वामी महावीर की मूर्ति परम्परा की प्राचीनता का निर्धारण अपेक्षित है। आगम-साहित्य एवं कल्पसूत्र जैसे प्रारम्भिक ग्रन्थों में जीवन्तस्वामी मूर्ति का उल्लेख नहीं प्राप्त होता है। जीवन्तस्वामी
१ शाह, यू०पी०, ए यूनीक जैन इमेज आव जीवन्तस्वामी, जर्नल ओरियण्टल इन्स्टीट्यूट, बड़ौदा, खं० १, अं० १,
पृ० ७६. २ शाह, यू० पी०, अकोटा ब्रोन्जेज, पृ० २६-२८, फलक ८६, बी, १२६. ३ द्रष्टव्य-अग्रवाल, आर० सी०, ए यूनीक इमेज आव जीवन्तस्वामी फाम राजस्थान, ब्रह्मविद्या, अड्यार, खं० २२,
अं० १-२, पृ० ३२-३४; तिवारी मारुतिनन्दन प्रसाद, ओसियां से प्राप्त जीवन्तस्वामी की अप्रकाशित मूर्तियां,
विश्वभारती, खं० १४, अं० ३, अक्टूबर-दिसम्बर, १९७३, पृ० २१५-१८. ४ अष्टप्रातिहार्यों में केवल सिंहासन को नहीं प्रदर्शित किया गया है।
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