Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
(८) मैनासुन्दरी अपनी व्रत साधना के बल पर अपने पति को कुष्ठरोग से मुक्त करती है। (श्रीपाल एवं मैंनासुन्दरी की कथा, पुष्याधव कथाकोश)
(e) सती जसमा ओडण, सती ऋषिदत्ता एवं लीलापत अणकारा अपने पतिव्रता के भव्यरूप में विश्ववन्दनीय
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बनती हैं।
(देखिए - अध्यात्मयोगी श्रीपुष्कर मुनि जैन कथाएँ भाग २० आदि) ।
संघर्षों के द्वन्द्वों में उन्मत्त शीर्षा नारी सर्वथा वरेण्य है, वह पूजनीय है, अनुकरणीया है एवं आलोकित प्रतिभा की धनी है । शक्तिसंगम तंत्र ताराखण्ड में प्रदत्त यह नारी प्रशस्ति शाश्वत अर्थवती है-
न नारीसदृशो यज्ञः न नारीसदृशो जपः ।
न नारीसदृशो योगो न भूतं न भविध्यति ॥
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न नारीसदृशो मंत्र न नारीसदृशं तपः । न नारीसदृशं वित्तं न भूतो न भविष्यति ॥
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