Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
'अनादि सम्बन्धे च' (२.४१) सूत्र द्वारा यह बता दिया है कि कर्मसन्तति की अपेक्षा अनादि सम्बन्ध होते हुए भी पर्याय दृष्टि से वह सादि सम्बन्ध वाला है। बीज और वृक्ष के सम्बन्ध पर दृष्टि डालें तो परम्परा की दृष्टि से उनका कार्य-कारणभाव अनादि होगा। जैसे अपने सामने लगे हुए नीम के वृक्ष का कारण हम उसके बीज को कहेंगे। यदि हमारी दृष्टि अपने नीम के झाड़ तक ही सीमित है तो हम उसे बीज से उत्पन्न कह सादि सम्बन्ध सूचित करेंगे किन्तु इस वृक्ष के उत्पादक बीज के जनक अन्य वृक्ष और उसके कारण अन्य बीज आदि की परम्परा पर दृष्टि डालें तो इस सम्बन्ध को अनादि मानना होना । किन्हीं दार्शनिकों को यह भ्रम हो गया है कि जो अनादि है, उसे अनन्त होना ही चाहिए । वस्तु-स्थिति ऐसी नहीं है, अनादि वस्तु अनन्त हो, न भी हो। यदि विरोधी कारण आ जावे तो अनादिकालीन सम्बन्ध की भी जड़ उखाड़ी जा सकती है । (पृ० २१५-१६)
__ जैन सिद्धान्तानुसार आत्मा का चरम लक्ष्य सांसारिक बंधनों से मुक्त होना है तथा एतदर्थ उसे निरन्तर प्रयास करना चाहिए।
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