Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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आगम-पाठ संशोधन : एक समस्या, एक समाधान
पास तथारूप स्थविरों के सामायिक आदि ग्यारह अंग पढ़ता है.......।' इसको पढ़ने से- महावीर के पास तथारूप स्थविरों के' इसका कोई अर्थ समझ में नहीं आता। यह शब्द-विपर्यय है। यह पाठ इस प्रकार होना चाहिए
'तए णं से मेहे अणगारे-समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए...."अहिज्जई'।।
इसका अर्थ होगा-तब वह मेघ अनगार श्रमण भगवान् महावीर के तथारूप स्थविरों के पास सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन करता है......"। यह स्पष्ट है । यहाँ 'अंतिए' शब्द का स्थानान्तरण होने से अर्थ की दुरूहता हो गई।
व्याख्यान की सुविधा के कारण कुछ मुनि कई शब्दों के अर्थ प्रतियों में लिख देते थे। कालान्तर में अर्थ उन शब्दों के साथ जुड़कर मूलपाठ के रूप में गृहीत हो गये। विभिन्न आगमों में इस प्रकार के पाठ उपलब्ध हुए हैं । उदाहरण के लिए ज्ञातासूत्र का एक पाठ उल्लिखित करता हूँ।
ज्ञातासूत्र के १.१६.१८ तथा उसके आस-पास के अनेक सूत्रों में एक पाठ प्रतियों में इस प्रकार प्राप्त होता है
तित्तकडुयस्स बहुनेहावगाढस्स । यहाँ अर्थ ने पाठ में संक्रमित होकर उसकी बनावट को बदल डाला। तिक्त का अर्थ है-कटुक । कालान्तर में यह कडुवा (प्रा०) तित्त के साथ मूल पाठ बनकर 'तित्तकडुयस्स' ऐसा बन गया। तथा 'तित्त' के बाद वाला 'आलाउयस्स' शब्द छूट गया। तथा 'बहुसंभारसंभियस्स नेहावगाढस्स' के स्थान पर केवल 'बहुनेहाबगाढस्स' मात्र रह गया। जो 'बहु' शब्द दूसरे शब्द के साथ था वह 'नेहावगाढस्स' के साथ जुड़ गया । इस सारे सन्दर्भ में इन शब्दों का अर्थ ही बदल गया । यहाँ मूल पाठ इस प्रकार होना चाहिए
तित्तालाउयस्स बहसंभारसंभियस्स नेहावगाढस्स ।' मैंने पहले वर्ण-विपर्यय से होने होने वाले पाठ-भेदों का उल्लेख किया है। उसका स्पष्ट उदाहरण ज्ञातासूत्र (१।११।१६) से सहज बुद्धिगम्य हो जाता है । वह प्रसंग इस प्रकार है
राजा जितशत्रु और अमात्य सुबुद्धि के बीच वार्तालाप का प्रसंग आया। राजा ने मन्त्री से कहा-'गन्दे पानी का वर्ण, गंध, रस और स्पर्श सभी अनमोज्ञ होते हैं, वे कभी मनोज्ञ नहीं बन सकते।'
मन्त्री बोला-राजन् ! ऐसा नहीं है। मनोज्ञ वर्ण, गंध, रस और स्पर्श वाले पुद्गल अमनोज्ञ वर्ण, गंध, रस और स्पर्श वाले हो सकते हैं और अमनोज्ञ वर्ण, गंध, रस और स्पर्श वाले पुद्गल मनोज्ञ वर्ण, गंध, रस और स्पर्श वाले हो सकते हैं।
राजा ने इसका परीक्षण चाहा । अमात्य ने गन्दा पानी लिया। उसे पहले नौ कपड़ों से छाना फिर नौ घड़ों से उसे झारा आदि-आदि ।
यहाँ प्रतियों में सर्वत्र वस्त्र के स्थान पर घड़े का उल्लेख है
नवएसु घडएसु गालावेई..."। 'पड' के स्थान 'घड' हो जाने के कारण अर्थ पकड़ने में कठिनाई होती है। 'घ' और 'प' लिखने में बहुत थोड़ा अन्तर रहता है। अत: वर्ण-विपर्यय से भी पाठों में बहुत बड़ा अन्तर होता रहता है।
वर्ण-विपर्यय का एक हास्यास्पद उल्लेख भी मिलता है। एक स्थान में मूल शब्द था 'दहमाण' इसका अर्थ होता है-जलता हुआ। इसके स्थान पर 'हदमाण' हो गया। इसका अर्थ होता है-मलविसर्जन करता हुआ। एक अक्षर के इधर-उधर हो जाने से अर्थ में कितना बड़ा भेद पड़ गया? यह स्पष्ट है।
____ आगमों के मूलपाठगत त्रुटियों के ये कुछेक उदाहरण हैं। इस प्रकार की तथा इनसे भिन्न प्रकार की त्रुटियों के उदाहरण भी यत्र-तत्र उपलब्ध हैं। ज्ञाताधर्मकथासूत्र में इसी प्रकार की सभी त्रुटियों के उदाहरण खोजे जा
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