Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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तेरापंथ सम्प्रदाय और नयी कविता
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उम्र भर हम अपने कंधों पर एक बेहोश शरीर ढोते रहे हैं और अपना पेट पालते रहे हैंधर्म और पुण्य के नाम पर मित्रों की सहायता के नाम पर आत्मनिर्भर होकर उसे कैसे बचा सकते हैं हम ?
अहिंसक जो हैं ।' साहसिकता यह भी है कि अहिंसा का पाथेय कवि ही अहिंसकता पर नुकीले दाँत गढ़ाता है, पर यह अहिंसा क्लीव मानसिकता की सूचक है। यह अकर्मण्यता जिजीविषा को पुष्ट नहीं करती, इसलिए कवि 'तड़प' को ही जीवन की परिभाषा कह डालता है
जीवन की परिभाषा एक शब्द में सिर्फ "तड़प" है वह जीवित भी मृत है
जिसमें तड़प नहीं है। साध्वी मंजुला का कहना है-"मौत को मत दो निमंत्रण, जिंदगी से जूझना है।" कवि इसी विश्वास को प्रकट करता है
किन्तु रहे आशा अमंद
नहीं साध्य के विकसे रेतीले हो जायें। ये कविताएँ मानवता की पोषक हैं । “मानवतावाद, नियतिवाद के विरुद्ध मानवता के कर्म, चिन्तन, स्वातन्त्र्य में आस्था रखते हैं । अतीत की सीमाओं और बन्धन से परे वह अपनी नियति का स्वयं ही निर्माता है।
(२) परम्परा और नूतनता का संघर्ष-परम्पराएँ मानवीय आकांक्षाओं की उपलब्धि के लिए मानव निर्मित व्यवस्थाएँ हैं, परन्तु इनका युगानुकूल परिष्कार अनिवार्य है। हर बार जीर्ण-शीर्ण परम्पराओं को चरमरा देना पड़ता है और नव्य व्यवस्थाओं का वरण करना होता है। परन्तु परम्पराओं के प्रति निरर्थक मोह अथवा नये के लिए अबूझा संकर्षण दोनों ही अनुपादेय हैं । मनुष्य अपनी सांस्कृतिक चेतना और प्रत्ययों से कटकर जी भी नहीं सकता, यह अलग बात है कि इन प्रत्ययों को नई दृष्टि से संग्राहित करना आवश्यक है। आधुनिकता का अर्थ परम्परा और अतीत के सम्पूर्ण बहिष्कार से नहीं, अपितु परम्परा को आज के सन्दर्भ में कसने का है। "आज हमारे मूल्य भिन्न है और हमारी आस्थाएँ भिन्न हैं । हमारी आस्था के सन्मुख एक तीव्र प्रश्नचिह्न हैं । इस प्रश्नचिह्न को हटाने में आवश्यकता अनुभव नहीं करता। इतना अवश्य अनुभव करता हूँ, आज तक लिखे जा रहे इस लम्बे वाक्य में हम एक "अर्ध-विराम" लगाकर देखें तो सही, क्या यह वाक्य सचमुच प्रश्नचिह्न की ओर तो जा रहा है ? "विनाश और निर्माण" कविता में कवि जीर्ण-शीर्ण मकान को तोड़ना ही चाहता है, यहाँ तक कि उसकी सड़ी-गली ईंटों और बूढ़े पत्थरों का भी उपयोग
१. अर्धविराम, पृ० ५६
२. गूंजते स्वर : बहरे कान-मुनि नथमल, पृ०६ ३. चेहरा एक : हजारों दर्पण, पृ० ४१ ४. अन्धा चाँद, पृ० ४६ ।। ५. नयी कविता : स्वरूप और समस्याएँ, जगदीश गुप्त, पृ० २२ ६. अर्धविराम की भूमिका से
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