Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
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मेरे भगवान ! दीनता और दरिद्रता के सागर में डूबी हुई तुम्हारी भक्त मण्डली को देख
क्या मैं कह सकता हूँ कि तुम दयालु हो ?' ईश्वर की ओट में पाखण्ड और अनाचार भी खुलकर खेले हैं । अब तो स्वयं ईश्वर ही ऐसे भक्तों से घबराकर उलटे पैरों भागा जा रहा है
आपकी मूरत पर वे सर्वस्व चढ़ा रहे हैं । अबकी बार वे झुझलाकर बोले हाँ इसीलिए ही तो
लोग इनसे ईमानदारीपूर्वक ठगे जा रहे हैं। ईश्वरीय अस्तित्व का प्रतीकत्व और उसके उखड़ते सिंहासन की वेदना भरी कहानी को यहाँ लक्षित किया जा सकता है
तभी भगवान ने सिसकियाँ भरते हुए उत्तर दिया-भक्त ! मत पूछो दर्द, बहुत दर्द
मेरी लगाम इन्सान के हाथ में है। (५) नारीत्व को आह्वान-आधुनिक युग में नारीत्व की उदात्त परिकल्पना में काव्य का विशेष योगदान रहा है। नारी व्यापक अर्थों में पुरुष की सहचरी है। पुरुष की वासना के भोगयन्त्र से मुक्त होकर आज नारी स्वयं की इयत्ता और स्वत्व को पहचानने लगी है। नारी की सामाजिक और रचनात्मक भूमिका को इन कवियों ने उभारा है
ध्वंस नहीं नब नव सर्जन में तुम ही हो सुन्दरतम शक्ति करो क्रान्ति मूच्छित जीवन में फिर आ जाये नवस्पन्दन
भारत की नारी, तुम जागो।। मुनि रूपचन्द्र ने भी विलासी शरीरों द्वारा नारी पर किये जा रहे पाशविक अत्याचारों पर निर्मम व्यंग्य किये हैं । इन विलासियों के लिए औरत एक जिस्म और मुनाफे का धन्धा मात्र है।
(६) साम्प्रदायिकता पर प्रहार-इन सभी कवियों ने मानवता को अलगाने वाली दीवारों को तोड़ा है। साम्प्रदायिकता के इस जहर ने कभी भी मनुष्य को एक नहीं होने दिया है।
वर्ण जाति और सम्प्रदाय की दीवारें इतनी बड़ी खड़ी हैं कि पत्थर पर फूल कभी खिला ही नहीं ।
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१. गूंजते स्वर : बहरे कान, पृ० २६ २. अंधा चाँद, पृ० ४२ ३. साक्षी है शब्दों की, पृष्ठ २१ ४. साक्षी है शब्दों की, पृ० ५० ५. गूंजते स्वर : बहरे कान, पृष्ठ ११
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