Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
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___ इन काव्यानुभूतियों के स्वर विविध हैं, जिन्हें सहज शब्द-बन्ध मिल गया है । सहजता के कारण कहीं-कहीं काव्य परिपाक शिथिल एवं गद्याभासी प्रतीत होता है। कहीं भाषा अनावश्यक स्फीति का बोध कराती है, तो कहीं उपयुक्त शब्द चयन की असावधानता । कला आवरण माँगती है और कवि बेलाग अभिव्यक्ति देना चाहता है। ऐसी स्थिति में ये कविताएँ प्रतीकित या बिम्बाधायी अभिव्यंजनाएँ नहीं दे पातीं। पुराने प्रतीक नये अर्थों की छाया नहीं दे पाते । कारण साफ है कि ये साधक कवि जन-प्रतिबद्ध है और इनका नये काव्य के क्षेत्र में प्रवेश भी ऐतिहासिक महत्त्व रखता है। धर्म के रूढ़ क्षेत्र में आधुनिक संवेदना का जनलिपि में ढलता यह स्वर पहले नहीं सुनाई दिया था।
लेकिन कलात्मक सामर्थ्य और नये अभिव्यक्ति शिल्प के संकेत भी कम नहीं हैं। कवि रूपचन्द्र ने अन्धा चाँद, उदास कबूतर, सूरज को फांसी, स्वाभिभक्त बैल, महासागर, मिल की चिमनी आदि अनेक नये अर्थ प्रतीकों को सिरजा है, जो जीवन के तनाबों, दोहरे मूल्यों, सभ्यता के विषैलेपन एवं बेमानी मूल्यों को पूरी अर्थगमता समेटे हुए हैं । शब्द चयन और मार्मिक अर्थ-स्फोट की दृष्टि से ये काव्य पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं१. शायद सिसकती हुई अमीरी की आहे
गरीबी की अनब्याही चाहों से ज्यादा भयंकर होती हैं। २. इन गीतों की सरगम से ।
यदि कोई पीड़ा हँसती है, तो हँस लेने दो इसकी (समुद्र) भोली बेटियों को जाल में फंसाकर आजाद शरीर, गुलाम साँसे
पीड़ा घुटन और आहों को ढोने वाली उसासे ५. अनाथ बच्चे सा कराहता हुआ शहर
इन स्थानों पर एन्टीथीसिस का सौन्दर्य मिलता है, जो कवि की प्रश्न-चिह्नित दृष्टि को उजागर करता है। इन कविताओं के उच्चार में ओवरटोन और बलाघात का विशेष महत्त्व है।
युवाचार्य महाप्रज्ञजी (मुनि नथमलजी) मूलत: विचारक हैं, दृष्टान्तों के सहारे निष्कर्षों तक पहुँचने वाले मनीषी ! यही उनका काव्य व्यक्तित्व भी है । अपनी अनुभूतियों और अभिव्यक्तियों में वे युग के प्रतीपत्व को प्रकट करते हैं, पर दर्शन की छाया छूटती नजर नहीं आती। वह तो उनका अन्तरंग है। इसीलिए उनकी कविताएँ प्रभाव की अपेक्षा बोध की परतों को उघाड़ती है, विचारों की दुनिया में ले जाती है।
साध्वी संघमित्राजी आज की युग दशा एवं मन:स्थितियों को बेबाक अभिव्यक्ति देने वाली कवयित्री हैं। उनके प्रथम प्रयास 'साक्षी है शब्दों की' में जीवन के विविध आयामों के अनियन्त्रित स्वर सुने जा सकते हैं। पर इनके प्रतीक और छन्द परम्परागत है, अत: नयी अर्थ-ऊर्जा देने में कमजोर साबित होते हैं । परन्तु अनुभूति या आवेग पाठक को संवेदित करता है । साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी का काव्य संकलन “सरगम' अपनी गीति संवेदना में आराध्य के प्रति समर्पण भाव ही प्रकट करता है। अपने टूटे-जुड़े जीवन को वह आराध्य के प्रति ही उत्सगित करना चाहती हैं। उनका आराध्य जगती के लिए चरित्र की बटछांह है, विशाल समुद्र को पार कराने वाली नौका है, अँधेरे पथ को नेतृत्व देने वाले चाँद की रोशनी है।
साध्वी मंजुलाजी का काव्य संग्रह "चेहरा एक : हजारों दर्पण' युगीन संवेदना और आराध्य के प्रति समर्पण दोनों दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है । कवयित्री क्षण की ईमानदार अनुभूतियों को शब्दों में संजोती है, लेकिन ये क्षण अस्तित्ववादी नहीं अपितु शाश्वत से जुड़े हुए हैं । यहाँ प्रत्येक कवि और संकलन का परिचयात्मक आलेख देना अभीष्ट नहीं है। परन्तु इस लेख में अचचित ऐसी कृतियाँ भी हैं, जो काव्य संवेदना के नये धरातल खोजती हैं। यह खोज नयी कविता के 'राहों के अन्वेषण' में संगति खाती प्रतीत होती है।
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