Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
.................................................... नहीं करना चाहता, इन वृथा मोहों से चिपककर सामाजिक वातावरण को दमघोंटू और जहरीला नहीं बनाना वाहता
इस मोह के विषधर को दूध पिलाने की कोशिश करेंगे फिर अपने मुर्दे को
कृत्रिम सांसों में जिलाने की कोशिश करेंगे।' लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हर नयापन ही सार्थक है। कवि नव पुरातन को प्रश्नित करता है, जिसका प्रतीक “उदास कबूतर" कविता में निहित है। वह किसी अशुभ को नहीं अपनाना चाहता है, जो भविष्य को बौना लगे
कि इस पर हम कुछ लिखेंचो चाहे कितना ही सन्दर्भहीन क्यों न हों लेकिन आगे आने वाली पीढ़ी की दृष्टि में हम औरों से भिन्न
(चाहें नपुंसक बौने ही) दीखें।। लेकिन इस संघर्ष में सामंजस्य का स्वर भी मिलता है । यह सामंजस्य निरर्थक के स्वीकार की कीमत पर नहीं अपितु नव-पुरातन के सम्मानपूर्ण आदर में लक्षित है
कली को चाहिए कि वह फूल को सम्मान दे पतझड़ को रोका नहीं जा सकता
कौंपल को टोका नहीं जा सकता। (३) आज की सभ्यता दोहरे जीवन मूल्य-कामायनी में प्रसादजी का इंगित था कि इच्छा, ज्ञान और क्रिया का असन्तुलन ही जीवन की विडम्बना है । आज मनुष्य ने अपने चातुर्य से इतने मुखौटे और आवरण गढ़ लिये हैं कि वास्तविक जीवन मूल्य तिरस्कृत हो गये हैं । मुनि रूपचन्द्र ने “स्वामिभक्त बैल" के प्रतीक से आज की दोहरी नैतिकता पर प्रहार किया है । व्यापारी इस बैल पर हड्डियों के ढेर से लेकर तस्करी का समान और भगाई हुई लड़कियों तक को ढोता हुआ मालिकीय मूल्यों का प्रशंसक बना रहा । व्यावसायिकता यही कहती रही कि बैल अन्त तक स्वामिभक्त बना रहा
अपने प्राणों को संकट में डालकर भी कानून के शिकंजों से मालिक को बचाता रहा +
+ आज इसी बात की चर्चा थी बाजार में
बड़ा स्वामिभक्त था बेचारा । । व्यावसायिकता के इस परिदृश्य में संवेदना को आत्महत्या करनी पड़े, तो क्या आश्चर्य ? इन दोहरे मूल्यों ने संवेदना-निरपेक्ष एक ऐसी अँधेरी संस्कृति को जन्म दिया है, जो सूरज की संस्कृति पर
१. अर्धविराम, पृष्ठ १० ३. अर्धविराम, पृ० ५४.
२. गूंजते स्वर : बहरे कान, पृ० १५, ४. अर्धविराम, पृ० २८.
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