Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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राजस्थानी काव्य की परम्परा में सुदर्शन चरित
एक-एक नर ने हुजूर, हाथ जोड़ी हाजर रहे। एक नर नें कहे दूर, निजर मेले नहीं तेहसूं ॥ एक सुन्दर रूप सरूप, गमतो लागे सकल नें । एकज कालो कुरूप, गमतो न लागे केहनें ॥ एक एक नी निर्मल देह. एक ने रोग पीड़ा घणी । किसो किजे अहमेव, कियो जिसोई पाईए । एक बालक विधवा नार, रात दिवस झूरे घणी । एक सज सोले सिणगार, नित नवला सुख भोगवे ॥ धराय, आण मनावे देश में ।
एक नर छत्र अलवाणे
पाय, घर-घर टुकड़ा मांगतो ॥ पाय, हुकम चलावे लोक में । हाट एक कोही के कारण ।।
एक
एक बैठे सिंघासण एक फिरे हाटो
एक सारे
निजकाज, संयम मारग आदरी ।
एकज विलसे राज, काज बिगाड़े आपणो ॥
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लोक भाषा में किया गया कर्म - विचित्रता का यह विशद वर्णन भाषा की दृष्टि से जितना सरल है, उसमें उतनी ही अधिक दर्शन की गहरी पृष्ठभूमि का विवेचन मिलता है। लोकजीवन भाषा में दर्शन की गम्भीरता को अत्यन्त सरल शब्दों में प्रस्तुत करना सचमुच ही एक आश्चर्य है ।
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काव्य की कसौटी पर सुदर्शन चरित सुदर्शन चरित को हम निःसंकोच एक परिपूर्ण काव्य की संज्ञा दे सकते हैं । काव्य क्या है ? इस पर विद्वानों ने भिन्न-भिन्न मत प्रकट किये हैं। आज तक काव्य की कोई एक ऐसी परिभाषा नहीं बन सकी जिसके सम्बन्ध में यह कहा जा सके कि इस परिभाषा के अनन्तर अब और परिभाषाएँ नहीं बनाई जाएँगी । काव्य इतनी विशाल और विचित्र वस्तु है कि उसे एक-दो वाक्यों की परिभाषा में बाँध देना बहुत कठिन है । काव्य के स्वरूप के सम्बन्ध में भारतीय और पाश्चात्य विद्वानों की भिन्न-भिन्न धारणाएँ हैं। आज तक की गई परिभाषाओं का उल्लेख सिर्फ लेख की कलेवर-वृद्धि मात्र ही होगा, अतः इतना ही कह देना पर्याप्त होगा कि उन परिभाषाओं की सूची में वृद्धि की जा सकती है पर उससे काव्य की परिभाषा समझने में कोई लाभ होगा, ऐसी आशा नहीं है।
कोशकार, कवि और समालोचक काव्य की परिभाषा करने में एकमत नहीं है किन्तु यदि इन सब परिभाषाओं की समन्विति में हम एषणा करें कि काव्य की परिभाषा करने वाले भिन्न-भिन्न विचारक किन-किन तत्त्वों को काव्य का घटक अवयव मानते हैं तो चार तत्त्व सहज ही हमारे हाथ लगते हैं, जिनका थोड़ा या बहुत अंशों में प्रायः सभी लक्षणकारों ने उल्लेख किया है। वे तत्त्व हैं - (१) भाव तत्त्व, (२) कल्पना - तत्त्व, (३) बुद्धितत्त्व और (४) शैलीतत्त्व । इनके आधार पर साधारणतया हम कह सकते हैं कि जिस रचना में जीवन की वास्तविकता को छूने वाले तथ्यों, अनुभूतियों, समस्याओं, विचारों आदि का भावना और कल्पना के आधार पर अनुकूल भाषा में सुसंगत रूप से वर्णन किया जाए, वह काव्य है ।
सुदर्शन चरित में भाव-तत्त्व - उच्चकोटि के काव्य वे माने जाते हैं जिनमें भाव तत्त्व अर्थात् अनुभूतियों का वर्णन रहता है तथा दूसरे तत्त्व सहायक बनकर भावतत्त्व का साथ देते हैं । यहाँ एक बात और समझने की है कि अनुभूति या भाव उदात्त हो, मानव को ऊँचा उठाने वाला हो । काव्य उस चीज को नहीं छूता जो कुत्सित है । काव्य का उद्देश्य मानव को पशुत्व से ऊपर उठाना है, इसलिए महाकवियों ने आहार आदि शारीरिक क्रियाओं का वर्णन अपने काव्यों में नहीं के बराबर किया है। पाशविक प्रवृत्ति वाले लोग जिन बातों को बहुत रस लेकर सुनते और
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