Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
.....
.............
-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.
आचार्य रामचन्द्र-गुणचन्द्र एवं उनका नाट्यदर्पण
0 डॉ० कमलेशकुमार जैन, जैन विश्वभारती, लाडनू
संस्कृत साहित्य में लाक्षणिक साहित्य का विशेष महत्त्व है। अलंकार-शास्त्र उसका प्रमुख अंग है। अलंकारशास्त्र के प्रणेताओं में जिनका प्रमुख रूप से नाम लिया जाता है, उनमें भारत, भामह, दण्डी, वामन, आनन्दवर्धन, मम्मट, हेमचन्द्र, विश्वनाथ और पण्डितराज जगन्नाथ विशेष हैं । इन आचार्यों में हेमचन्द्र जैन-आचार्य हैं, जिन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा एवं साहित्य साधना से न केवल देशी अपितु डा० पिटर्सन जैसे विदेशी विद्वानों को भी चमत्कृत किया है।
अलंकार-शास्त्र पर जैनाचार्यों द्वारा प्राकृत भाषा में निबद्ध सर्वप्रथम रचना 'अलंकार दप्पण' है, जिनका काल श्री अगरचन्द नाहटा ने ८वीं से ११वीं शताब्दी माना है। यद्यपि इससे पूर्व नाट्यशास्त्र के आद्य प्रणेता भरतमुनि के समकालीन आर्यरक्षित (ईसा की प्रथम शती) ने 'अनुयोग-द्वारसूत्र' में नौ रसों का विवेचन किया है तथापि सामान्य विवेचन होने से इन्हें विशुद्ध आलंकारिक-परम्परा से नहीं जोड़ा जा सकता है। तदनन्तर वाग्भट प्रथम (ईसा की १२वीं शती का पूर्वार्द्ध) ने वाग्भटालंकार, हेमचन्द्र (१२वीं शती) ने काव्यानुशासन, रामचन्द्र-गुणचन्द्र (१२वीं शती) ने नाट्यदर्पण, नरेन्द्रप्रभुसूरि (१३वीं शती ) ने अलंकारमहोदधि, अमरचन्द्रसूरि (१३वीं शती) ने काव्यकल्पलतावृत्ति, विनयचन्द्रसूरि (१३वीं शती) ने काव्यशिक्षा, विजयवर्णी (१३ वीं शती) ने शृंगारार्णवचन्द्रिका, अजितसेन (१३वीं शती) ने अलंकारचिन्तामणि, वाग्भट द्वितीय (१४वीं शती) ने काव्यानुशासन, मण्डन मन्त्री (१४वीं शती) ने अलंकारमण्डन, भावदेवसरि (१४वीं शती) ने काव्यालंकारसारसंग्रह, पद्मसुन्दरगणि (१६वीं का उत्तरार्द्ध) ने अकबरसाहिशृंगारदर्पण और सिद्धिचन्द्रगणि (१७वीं शती) ने काव्यप्रकाश खण्डन की स्वतन्त्र रचना की। इनके अतिरिक्त अलंकार शास्त्रीय ग्रन्थों ने अनेक टीकाकार भी हुए हैं, जिनमें महाकवि रुद्रट काव्यालंकार पर श्वेताम्बर जैन विद्वान् नमिसाधु द्वारा वि०सं० ११२५ में लिखित टीका और वाग्देवतावतार आचार्य मम्मट-रचित काव्यप्रकाश पर माणिक्यचन्द्रसूरि द्वारा वि०सं० १२६६ में लिखित संकेत नामक टीकाएं अतिप्रसिद्ध हैं।
प्रस्तुत लेख में नाट्यदर्पण के प्रणेता आचार्य रामचन्द्र-गुणचन्द्र का विवेचन ही अभीष्ट है। रामचन्द्र-गुणचन्द्र का नाम प्राय: साथ-साथ लिया जाता है । इन विद्वानों के माता-पिता और वंश इत्यादि के विषय में कोई उल्लेख नहीं मिलता है । अत: इतना ही कहा जा सकता है कि ये दोनों विद्वान् सतीर्थ्य थे। आचार्य रामचन्द्र ने अपने अनेक ग्रन्थों में अपने को आचार्य हेमचन्द्र का शिष्य बतलाया है। ये उनके पट्टधर शिष्य थे। इसकी पुष्टि प्रभावकचरित के इस
१. (क) शब्द-प्रमाण-साहित्य-छन्दोलक्ष्मविद्यायिनाम् ।
श्री हेमचन्द्रादानां प्रसादाय नमो नमः ।। ---हिन्दी नाट्यदर्पण, व्याख्याकार-आचार्य विश्वेश्वर, प्रका० दिल्ली विश्वविद्यालय, १६६१, अन्तिम प्रशस्ति,
पद्य १. (ख) सूत्रधार-दत्तः श्रीमदाचार्यहेमचन्द्रस्य शिष्येण रामचन्द्रेण विरचितं नलविलासाभिधानमाद्य रूपकमभिनेतुमादेशः ।
-नलविलास-नाटक, सम्पादक-जे०के० गोण्डेकर, प्रका० गायकवाड़ ओरियण्टल सीरीज, बड़ौदा, पृ० १. (ग) श्रीमदाचार्यश्रीहेमचन्द्र शिष्यस्य प्रबंधशतकर्तुं महाकवे: रामचन्द्रस्य भूयांस: प्रबंधाः। -निर्भयभीम-व्यायोग,
सम्पादक -पं० हरगोविन्ददास बेचरदास, प्रका०-हर्षचन्द भूराभाई, वाराणसी, वी०सं० २४३८, पृ० १.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org