Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
४०८
कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
Jain Education International
रत्नधीर ( १७४६ ई० ) - यह खरतरगच्छीय मुनि ज्ञानसागर के शिष्य थे। इन्होंने पद्मप्रभसूरिकृत 'भुवनदीपक'' पर सं० १८०६ (१७४६ ई०) में बालावबोध लिखा है ।
मुनि मेघ ( १७६० ई० ) – यह उत्तराधगच्छ के मुनि जटमल शिष्य परमानन्द शिष्य सदानन्द शिष्य नारायण शिष्य नरोतम शिष्य मयाराम के शिष्य थे। इनका निवासस्थान फगवाड़ा (पटियाला स्टेट, पंजाब) था यह ज्योतिष और वैद्यक के विद्वान् थे। वैद्यक पर मेघविनोद ग्रन्थ मिलता है । ज्योतिष पर मेघमाला नामक ग्रन्थ लिखा है । इसकी रचना फगवाड़ा में चौधरी चाहड़मल के काल में सं० १८१७ को हुई थी। यह वर्षा - ज्ञान सम्बन्धी ग्रन्थ है ।
यति रामचन्द (१७६० ई०) वह खरतरगच्छीय मुनि थे। इनका क्षेत्र नागौर (राजस्थान ) था इन्होंने शकुनशास्त्र पर अवयादी शकुनावली नामक ग्रन्थ सं० १८१७ में लिखा था ।
भूधरदास (१७७० ई० ) – यह खरतरगच्छीय जिनसागरसूरि शाखा के रंगवल्लभ के शिष्य थे। इन्होंने भौधरी ग्रहसारणी नामक ज्योतिष ग्रन्थ सं० १८२७ में रचा ।
मुनि मतिसागर इनका नाम मतिसार भी है। राज भट्ट कुत चमत्कार चितामणि पर इन्होंने सं० १०२७ में फरीदकोट में टबा की रचना की है।
-
मुनि विद्याम (१७७३ ई० ) – यह खरतरगच्छीय मुनि थे। इन्होंने विवाहपटल पर सं० १५३० में अर्थ नामक टीका लिखी है।
मुनि खुशालसुन्दर (१७०२ ६० ) - इन्होंने वराहमिहिर के लघुजातक पर स्तबक सं० १८३६ में लिखा है। सतीदास (११वीं शती) - यह जनयति थे। इन्होंने सुधासिंह के काल में शुकनावली (शकुनाचली) ग्रन्थ पद्यमय भाषा में लिखा है ।
चिदानन्द (यूरचंद (१८५० ई० ) - यह खरतरगच्छीय पति मुनालाल के शिष्य थे। इन्होंने पालीताणा (गुजरात) में सं० १६०७ में पद्यों में स्वरोदयभाषा की रचना की है ।
निमित्त प्रत्य
सिद्धपाहुड (सिद्धप्राभृत) - यह ग्रन्थ अप्राप्त है । इसमें अंजन, पादलेप, गुटिका आदि का वर्णन था ।
जयपाहुड (जयप्राभृत) — अज्ञातकर्तृ के । यह निमित्तशास्त्र सम्बन्धी है । यह जिनभाषित है । इसमें अतीत, अनागत सम्बन्धी नष्ट, मुष्टि, चिंता, विकल्प आदि के लाभालाभ का ३७८ गाथाओं में विचार है। यह १०वीं शती के पहले की रचना है ।
निमित्तपाड (निमित्तप्राभूत) — इसमें ज्योतिष व स्वप्न आदि निमित्तों का वर्णन है। इसका आचार्य भई स्वर ने 'कहावली' में उल्लेख किया है ।
जोणिपाहुड ( यौनिप्राभृत) - यह निमित्तशास्त्र का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसे दिगम्बर आचार्य धरसेन ( प्रज्ञाश्रमण मुनि) ने अपने शिष्य पुष्पदंत और भूतबलि के लिए लिखा है। इसमें ज्वर, भूत, शाकिनी आदि को दूर करने के विधान दिये हैं । इसे सब विद्याओं और धातुवाद का मूल तथा आयुर्वेद का सार रूप माना है। इसमें एक जगह लिखा है कि प्रज्ञाश्रमणमुनि ने संक्षेप में 'बालतंत्र' भी लिखा है।
पहावगारग ( प्रश्नव्याकरण ) - यह दसवें अंग आगम से भिन्न निमित्त सम्बन्धी प्राकृत ग्रन्थ है । इसमें निमित्त का सांगोपांग वर्णन है। इस पर ३ टीकाएँ हैं।
श्वानशकुनाध्याय अज्ञातक के संस्कृत में २२ पद्यों में रचित है। इसमें कुत्ते की गतियों और चेष्टाओं से शुभाशुभ फल बताये हैं।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.