Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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"मानता है कि
"हो वे हैं. लेकिन किसी आवृति में तीन तो किसी में पाँच, श्लोक, अधिक भी मिलते हैं । इस कोश में १७०० शब्द हैं। आपने इन श्लोकों की रचना 'अनुष्टुप् छन्द में की है। इस कोश में एक शब्द से शब्दान्तर करने की विशेष पद्धति का प्रतिपादन किया गया है ।
जैसे—मनुष्य वाचक शब्द से आगे 'पति' शब्द जोड़ देने से 'नृपवाची' नाम बनता है। 'वृक्ष' वाची के आगे 'चर' शब्द जोड़ देने से वानरवाची नाम बनता है। इस प्रकार आपका प्राकृत कोश आजकल के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होता है। इस कोश के अध्ययन से सरलता के साथ संस्कृत का शब्द भण्डार बढ़ता है ।
धनंजय के काव्यग्रन्थ निम्न हैं
ला
जाता है।
(२) आचार्य हेमचन्द्र अभिधानचितामणिनाममाला- आचार्य हेमचन्द्र ने 'अभिधानचितामणिनाममाला' का प्रणयन किया है। आपका समय १३वीं शती के लगभग है। आपका पूरा नाम हेमचन्द्रसूरि है । आचार्य हेमचन्द्र के जीवनवृत्त का ठीक-ठीक पता नहीं चलता । इनकी रचनाओं में इन्होंने अपना या अपने वंश का उल्लेख नहीं किया है।
क्र० सं०
१.
२.
३.
इस कोश का आरम्भ शब्दानुशासन के समस्त अंगों की रचना प्रतिष्ठित हो जाने के बाद किया है ।" आपने स्वयं कोश की उपयोगिता बताते हुए लिखा है- "बुधजन वक्तृत्व और कवित्व को विद्वत्ता का फल बताते हैं । परन्तु ये दोनों शब्द ज्ञान के बिना सिद्ध नहीं हो सकते ।"
इस कोश की रचना 'अमरकोश' के समान ही की गयी है। यह कोश रूद, यौगिक और मिश्र एकार्थक शब्दों का संग्रह है। इसमें कांडों का विभाजन निम्न प्रकार हुआ है
४.
इस कोश की
स्तोत्र,
उन सभी ग्रन्थों पर विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न टीकायें लिखी है। कई भाव्य भी उपलब्ध होते हैं।
५०
६.
काण्ड
देवाधिदेव काण्ड देवनाण्ड
मर्त्य काण्ड
तिर्यक् काण्ड
जैन साहित्य में कोश-परम्परा ४२३
१. प्रणिवत्यार्हतः
सिद्धसांगशब्दानुशासनः । रूढ यौगिक मिश्राणां नाम्नां मालां तनोम्यहम् ॥ वक्तृत्वं च कवित्वं च विद्वत्तायाः फलं विदुः । शब्दज्ञानादृते
तन्न
यमप्युपपद्यते ॥
श्लोक
६८
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२५०
५६७
२. राघवीय
४. अनेकार्थ निघण्टु ।
४२३
७
नारक काण्ड
साधारण काण्ड
१७८
नवीन एवं प्राचीन शब्दों का
इस ग्रन्थ में कुल १५४१ श्लोक हैं। अमरकोश से यह कोश शब्द संख्या में डेढ़ गुना बड़ा है | पर्यायवाची शब्दों के साथ-साथ भाषा-सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण सामग्री भी इसमें प्राप्त होती है। इसमें समन्वय है। इसकी एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि इन्होंने कवि द्वारा प्रयुक्त और सामान्य बन्दों को ग्रहण नहीं किया है ।
विषय
२४ तीर्थंकर तथा उनके अतिशयों के नाम । देवता तथा तत्सम्बन्धी वस्तुओं के नाम ।
मनुष्यों एवं उनके व्यवहार में आने वाले पदार्थों के नाम ।
पशु, पक्षी, जीव, जन्तु, वनस्पति, खनिज आदि के नाम ।
नरकवासियों के नाम ।
ध्वनि, सुगन्ध और सामान्य पदार्थों के नाम ।
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