Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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राजस्थान के जैन संस्कृत साहित्यकार
४५७ .
टीका ग्रन्थों में अधिकांश रचनाएँ हेमचन्द्राचार्य की हैं। जिनमें १. हेमनाममाला शेष संग्रह टीका, २. हेमनाममाला शिलोच्छ टीका', ३. हेमलिंगानुशासन दुर्गप्रदप्रबोध टीका, ४. हेमनिघण्टु टीका, ५. सिद्ध हेमशब्दानुशासन टीका प्रमुख है।
(४०) सहजकीति-हेमनन्दन के शिष्य सहजकीति ने कल्पसूत्र, गौतम कुलक, वैराग्यशतक, सारस्वत आदि ग्रन्थों पर टीका लिखी।
(४१) गुणरत्न-विनयप्रमोद के शिष्य गुणरत्न की काव्य प्रकाश, तर्कभाषा, सारस्वत एवं रघुवंश पर टीका प्राप्त होती है। यह प्रतीत होता है कि आप काव्यशास्त्र, न्यायदर्शन, व्याकरण एवं साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान थे।
(४२) सूरचन्द-वीरकलग के शिष्य सूरचन्द दर्शन एवं साहित्यशास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित थे। आपकी कृतियों स्थूलभद्र गुणमाला काव्य, शान्तिलहरी, शृंगाररसमाला एवं पर्दकविंशति काव्य की मौलिक रचनाएँ हैं । अष्टार्थी श्लोक वृत्ति एवं 'जैन तत्वसार की स्वोपज्ञ टीका' टीका साहित्य के अन्तर्गत परिगणित होती है।
(४३) मेघविजयोपाध्याय-कृपाविजय के शिष्य मेघविजयोपाध्याय काव्य, व्याकरण, न्याय, ज्योतिष आदि के विद्वान थे । आपने अपने आपको कालिदास, भारवि, माघ एवं कविराज के समकक्ष माना है। इसलिए इन्होंने उनकी शैली में ही काव्य प्रणयन किया।
कालिदास की शैली में मेघदूत-समस्यालेख, भारवि की शैली में किरातार्जुनीय-पादपूर्ति, माघ की शैली में देवानन्द-महाकाव्य तथा कविराज की शैली में सप्तसंधानकाव्य का प्रणयन किया। इस काव्य में कवि ने राम, कृष्ण, ऋषभदेव, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ तथा महावीर का चरित श्लेष विधि से वणित किया। २ श्लोकों के ७ अर्थ निकलते हैं जो अलग-अलग महापुरुषों के जीवन पर घटित होते हैं। देवानन्द महाकाव्य की रचना स. १७२७ में सादड़ी में हुई एवं ग्रन्थकार ने इसकी लिपि ग्वालियर में की।
इनके अतिरिक्त लघु त्रिषष्टिशलाका-पुरुष-चरित, भविष्यदत्त-चरित हस्तसंजीवनयुक्ति प्रबोध, मातृका-प्रसाद आदि रचनाएँ भी उपलब्ध हैं ।
(४४) भट्टारक श्रीभूषण-भट्टारक भुवनकीर्ति के शिष्य भट्टारक श्रीभूषण सं० १७०५ में नागौर की गद्दों पर अभिषिक्त हुए।
आपकी पाँच रचनाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। पांचों रचनाएँ पूजा-पद्धति का विश्लेषण करती हैं। इनके नाम क्रमशः निम्न प्रकार हैं :
१. अनन्त चतुर्दशीपूजा, २. अनन्तनाथ पूजा, ३. भक्तामरपूजा, ४. श्रुतस्कन्ध पूजा, ५. सप्तर्षि पूजा ।
(४५) वाविराज-खण्डेलवाल वंश में उत्पन्न वादिराज स्वयं को धनंजय, आशाधर एवं वाणभट्ट का अवतार एवं तक्षकनगर (टोडारायसिंह) को अनहिलपुर के समान बतलाता है । वादिराज तक्षकनगर के नरेश राजसिंह के महामात्य थे । आपके चार पुत्र थे--रामचन्द्र, लालजी, नेमिदास, विमलदास ।
वादिराज की तीन कृतियाँ प्राप्त होती हैं-वाग्भटालंकारटीका, ज्ञानलोचनस्तोत्र तथा सुलोचनाचरित । वाग्भटालंकार की टीका की रचना दीपमालिका सं० १७२९ में हुई।
-सप्तसंधानकाव्य ४:४२.
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१. भारतीय विद्या मन्दिर अहमदाबाद से प्रकाशित । २. काव्येऽस्मिन् त एव सप्त कथिता अर्था समग्रश्रिये ३. देवानन्द महाकाव्य ग्रन्थ प्रशस्ति ३. ४. धनंजयाशाधरवाग्भटानां धत्ते पदं सम्प्रति वादिराजः ।
खांडिलवंशोद्भवपोमसुनु जिनोक्तिपीयूष सुतृप्तगात्रः ।।
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