Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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अपभ्रंश चरिउ काव्यों को भाषिक संरचनाएं
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इसी प्रकार भगवान का एक सन्दर्भ जंबुसामिचरिउ में द्रष्टव्य है
तहो तले कणय रयणहरि-विट्ठरे, किरणाहयसुरिंदसेहरकरे ।। पत्तपहुत्ततिछत्तालंकिए, देवकुमारमुक्ककुसुमंकिए ॥ चामरकरजक्खेसर भद्दए, दुन्दुहिसद्धनिहयपडिसद्दए ॥ दिव्वए सव्वाणि परिमाणिए, सयल भाससंवलिए वाणिए ॥ भामंडलमज्झठिउ,.................॥
-(जंबुसामिचरिउ, संधि १, १७) इस प्रसंग की भाषिक संरचना हैक्रि० वि० पदबंध+विशेषण ष० बं,+वि० प० बं+........+वि० ५० बं,
दोनों प्रसंगों में एक अन्तर है कर्ता प० बं० के नियोजन का । अन्यथा कि० वि० से प्रारम्भ संरचना में समान संरचनावाले विशेषण पदबन्धों का आवर्तन दोनों उद्धरणों में है। इस प्रकार का आवर्तन विशेष्य की एक-एक विशेषता की पते क्रमशः खोलता जाता है । रचयिताकृत शब्दचयन, बिम्बनिर्मायक तत्व-चयन, प्रतीक चयन आदि का कौशल इस आवर्तन में स्पष्ट देखा जा सकता है। णायकुमारचरिउ में सरस्वती वर्णन का निम्नलिखित प्रसंग भी आवर्तन के चमत्कार का उदाहरण है
दुविहालंकारे विष्फरंति, लीला कोमलई दिति ॥ महकव्वणिहेलणि संचरंति, बहुहावभावविभम धरंति ॥ सुपसत्य अत्य दिहि करंति, सम्बई विण्णाण संभरंति ॥ णोसेस देसभासउ चवंति, लक्खणइं विसिट्ठई दक्खवंति ॥
-(णायकुमारचरिउ संधि, १,१) उपर्युक्त प्रसंग में
विशेषण पद बन्ध,+.............."विशेषण पदबन्धक+विशेष्य प. बं संरचना है और विशेषण पदबन्ध भी
मुक्तरूपिमबद्धरूपिम 'टा'+क्रियापद रचना का ही आवर्तन हुआ है। करकंड नरिउ में शील मुनि के सन्दर्भ की निम्नलिखित संरचना भी द्रष्टव्य है
जसु सणे हरि उपसमु सरेइ करिकुम्भहो माह ण सो करेइ ॥ अवरुप्पर वइरइ जे बहंति, तहो दसणे मद्दउ मणे लिहंति ॥ जसु दसणे अणुवय के विलिति, जिणु छोडवि अण्णहि मणुणदिति ॥
-(करकंडुचरिउ, संधि ६, १) इस पाठांश में 'जसू...............' संरचना का आवर्तन हुआ है। 'मयणपराजय' में भी यह स्थिति देखने को मिलती है
कमल कोमल कमलकतिल्ल कमलंकिय कमलगय कमलहणणसिहरेण अंचिय।
कमलापिय, कमलापिय कमलभवहि कमलेहि पुज्जिय । न केवल पदबन्धों का वरन् रूपिम का भी आवर्तन कवि ने किया है । वर्णन प्रसंग में इस प्रकार का संरचना आवर्तन अपभ्रंश के चरिउकाव्यों की विशेषता है। वर्णन प्रसंग से प्रतिबद्ध होने के कारण यह संरचना-प्रयोग अपभ्रंश'काव्यों का एक शैलीचिह्नक है।
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