Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
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प्रयोजन होता है। शब्द-चयन की ही भांति भाषिक संरचना भी यादृच्छिक नहीं होती। कालविशेष में या काव्य प्रवृत्तिविशेष में भाषा में कुछ विशेष संरचनाएँ उस प्रवृत्तिविशेष के शैलीचिह्नक के रूप में पहचानी जाने लगती हैं। आवर्तन की दृष्टि से, सर्वाधिक आवतित संरचनाएँ जो अपभ्रंश काव्य में उपलब्ध होती हैं, का निबन्धन निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है। यही संरचना नहीं है, इनके अतिरिक्त भी है, यह प्रस्तुतीकरण आवर्तन और समानान्तरता की दृष्टि से है।
(१) पात्र के रूप, आकृति अथवा गुण वर्णन में अलंकार संरचनाओं का आवर्तन रूप, गुण अथवा आकृति के सौन्दर्य से प्रभावित रचयिता-मानस के आबेग की सूचना इन संरचनाओं से मिलती है, इस संरचना का सूत्र है
___णं+ कर्ता + कर्म + क्रिया अथवा, क्रियापद + णं + विशेषण पद
(२) द्वितीय संरचना कि........' के आवर्तन वाली है, वक्ता-मानस के संभ्रम की सूचक है। इसमें सामान्यतः अलंकार संरचना का अन्तर्भाव रहता है, क्योंकि एक उपमेय के लिए अनेक उपमान उपवाक्यों का प्रयोग होता है। क्योंकि कथ्य एक रहता है, इसलिए संरचना भी समान होती है
कि............
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कि.............
कथ्य-----
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कि...........
आवेगपूर्ण संभ्रम की व्यंजना इस संरचना की विशेषता है। (३) तृतीय प्रकार की संरचना का सूत्र है___ क्रियाविशेषण+क्रिया+कर्ता+विशेषण पदबन्ध, +............+विशेषण पदबन्ध,+............
यह संरचना ज्ञात कर्ता की नई-नई विशेषताओं का क्रमश: उद्घाटन करती है। प्रारम्भ में सरल वाक्य होता है, विशेषण पदबन्धों में रूपक अथवा उत्प्रेक्षा संरचना होती है। ज्ञात घटना से कर्ता की अब तक अज्ञात विशेषताओं का प्रत्यक्षीकरण होता है। (४) चतुर्थ प्रकार की बहुप्रयुक्त संरचना हैविशेषण पदबन्ध,+विशेषण पदबन्ध, +..........."कर्ता+क्रिया
ससा दोणरायस्स भग्गाणुराया, तुलाकोडि कंति लयालिद्धपाया। स पालम्ब कञ्ची-पहा भिण्ण गुज्झा, धगुतुंगभारेणजाणित्तममा ॥ णवासोय वच्छच्छयाछाय पाणी वरालाविणी-कोइलालाववाणी । महामोरपिच्छोह संकाय केसा, अणंगस्स भल्ली वपच्छष्णवेसा ।
गया केवकया जत्थ अत्थाण-मग्गो । (५) पाँचवीं संरचना प्रश्नवाचक को...........' है, इसका प्रतिपाद्य या तो निषेधात्मक होता है, या पात्र की मूर्खता का सूचक । इसका सूत्र है
को.........."कर्म+क्रिया
कर्ता स्वयं 'को' में निहित होता है। संरचना का कर्म+क्रिया अंश असम्भव कार्य के सूचक होते हैं, अर्थ होता है—ऐसा कौन करता है कर सकता है, भावार्थ होता है 'कोई नहीं, जो करता है वह प्रमादी होता है।
(६) छठी आवर्तित संरचना है
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