Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
४७४
-+-+
Jain Education International
• कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ पंचम खण्ड
(१) दीघनिकाय (२) मज्झिमनिकाय, (३) संयुत्तनिकाय, (४) अंगुत्तरनिकाय, (५) खुद्दकनिकाय | (द) पालि या पिटक साहित्य या अनुपालि व अनुपिटक साहित्य- ये दो स्थूल विभाग किये गये हैं ।
२. पैशाची
पैशाची एक बहुत प्राचीन प्राकृत है। इसकी गणना पालि अर्धमागधी व शिलालेखों की प्राकृतों के साथ की जाती है। खरोष्ठी शिलालेखों व कुवलयमाला में पैशाची की विशेषताएं देखने को मिलती है।
पैशाची की प्रकृति शौरसेनी है। मार्कण्डेय ने पैशाची भाषा को कैकय, शौरसेन और पांचाल इन तीन भेदों में विभक्त किया है । डॉ० सर जार्ज ग्रियर्सन के अनुसार पैशाची का आदिम स्थान उत्तर पश्चिम पंजाब व अफगानिस्तान प्रान्त है। पंजाब, सिन्ध, बिलोचिस्तान, काश्मीर की भाषाओं पर इसका प्रभाव आज भी लक्षित होता है।
इस समय पैशाची भाषा का उदाहरण 'प्राकृत प्रकाश', आचार्य हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण, षड्भाषाचन्द्रिका, प्राकृत- सर्वस्व आदि प्राकृत व्याकरणों में तथा हेमचन्द्र के कुमारपालचरित्र व काव्यानुशासन में एवं एक-दो षड्भाषाचन्द्रिका में प्राप्य हैं । प्रथम युग की पैशाची भाषा का कोई निदर्शन साहित्य में नहीं मिलता है । गुणाढ्य की बृहत्कथा प्रथम शताब्दी की रचना है परन्तु वर्तमान में उपलब्ध नहीं है । आजकल पैशाची के जो उदाहरण मिलते हैं, वह मध्य युग की पैशाची भाषा के हैं। मध्य युग की यह पैशाची भाषा ख्रिस्त की द्वितीय शताब्दी से पांचवीं शताब्दी पर्यन्त प्रचलित थी ।
लक्षण - (१) पैशाची शब्दों के आदि में न रहने पर वर्गों के तृतीय व चतुर्थ वर्णों के स्थान पर उसी वर्ग के क्रमशः प्रथम व द्वितीय वर्ग हो जाते हैं जैसे गकनं गगनम् ग के स्थान पर क
(२) ज्ञ, न्य व ण्य के स्थान पर ञ्ञ होता है प्रज्ञा = पञ्जा, पुण्य = पुञ्ञ (३) ण व न दोनों के स्थान पर 'न' होता है गुण = गुन, कनक = कनक
(४) त व द के स्थान पर 'त' ही होता है— शतसत, मदन पतन, देव = तेय
(५) अकारान्त शब्द की पंचमी का एकवचन आतो व आदु होता है जैसे- जिनातों - जिनातु
(६) भविष्य काल के स्सि के बदले एम्य होता है ।
(७) शौरसेनी के दि व दे प्रत्ययों की जगह ति व ते होता है । जैसे— रमति, रमते
२. पुलिया पैशाची
चूलिका पैशाची, पैशाची का एक भेद है । इसका सम्बन्ध काशगर से माना जाय तो अनुचित नहीं होगा । उस प्रदेश के समीपवर्ती चीनी तुर्किस्तान में मिले हुए पट्टिका लेखों में ऐसी विशेषताएँ पायी जाती हैं । इसके लक्षण आचार्य हेमचन्द्र ने अपने प्राकृत व्याकरण व लक्ष्मीधर ने षड्भाषाचन्द्रिका में दिये हैं । हेमचन्द्र के कुमारपालचरित्र व काव्यानुशासन में इस भाषा के निर्देश हैं । आचार्य हेमचन्द्र ने अपने 'अभिधानचिन्तामणि' नामक संस्कृत कोष ग्रन्थ में पैशाची के साथ ही उसका उल्लेख किया है ।
लक्षण - (१) चूलिका पैशाची में र के स्थान पर विकल्प से ल होता है। गौरी = गोली, चरण = चलण,
राजा = लाजा ।
(२) इसमें पैशाची के समान वर्ग के तृतीय व चतुर्थ वर्णों के स्थान पर प्रथम व द्वितीय वर्ण होता है । नगः = नको
ग के स्थान पर क
झ के स्थान पर छव र के स्थान पर ल
झर= छलो ठक्का = ठक्का
ठ का ठ शब्द
१. अभिनव प्राकृत व्याकरण, पृ० ४४४
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org