Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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अपभ्रंश साहित्य-परम्परा
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से प्रकाशित कराया। श्वेताम्बर आगम ग्रन्थ "भगवती सूत्र" पर जो शोध-कार्य वेबर ने किया, वह चिरस्मरणीय माना जाता है। यह ग्रन्थ बलिन की विसेन्चाफेन (Wissenchaften) अकादमी से १९६६-६७ में मुद्रित हुआ था। वेबर ने जैनों के धार्मिक साहित्य के विषय में विस्तार से लिखा था, जिसका अंग्रेजी अनुवाद स्मिथ ने प्रकाशित किया था। विण्डिश ने अपने विश्वकोश (Encyclopedia of Indo Aryan Researc1) में तत्सम्बन्धी विस्तृत विवरण दिया है। इस प्रकार जैन विद्याओं के अध्ययन का सूत्रपात करने वाला तथा शोध व अनुसन्धान को निर्दिष्ट करने वाला विश्व का सर्वप्रथम अध्ययन केन्द्र जर्मन में विशेष रूप से बर्लिन रहा है। होएफर, लास्सन, स्वीगल, फ्रेडरिक हेग, रिचर्ड पिशेल, अल्वर्ट वेबर, ई० व्युमन, डॉ. हर्मन जेकोबी, डब्ल्यू व्हिटसन, वाल्टर शुबिंग, लुडविग आल्डोर्फ, नार्मन ब्राउन, क्लास ब्रहन, गुस्तेव राथ और डब्ल्यू० बी० बोल्ले इत्या दि जर्मन विद्वान् है।
विदेशों में पूर्व जर्मनी में फ्री युनिवर्सिटी, बलिन में प्रोफेसर डॉ० क्लास ब्रुहन (Klaus Bruehn) जैन लिटरेचर एण्ड माइथालाजी, इण्डियन आर्ट एण्ड इकोनोग्राफी का अध्यापन-कार्य कर रहे हैं। उनके सहयोगी डॉ० चन्द्रभाई बी० त्रिपाठी बुद्धिस्ट जैन लिटरेचर तथा डॉ. मोनीका जार्डन 'जैन लिटरेचर' का अध्यापन कार्य करने में प्रवृत्त हैं। पेनिसिलवानिया युनिवर्सिटी में नार्मन ब्राउन के निर्देशन में प्राकृत तथा जैन साहित्य पर अनुसन्धान-कार्य चल रहा है। इसी प्रकार युनिवर्सिटी आफ केम्ब्रिज में के० आर० नार्मन अध्यापन-कार्य कर रहे हैं। लीडन युनिवर्सिटी में प्रोफेसर एफ० बी० जे० क्युपर भी इस दिशा में प्रवर्तमान हैं।
प्राच्य-विद्याओं की भाँति जैनविद्याओं का भी दूसरा महत्वपूर्ण अध्ययन केन्द्र फ्रान्स था। फ्रांसीसी विद्वानों में सर्वप्रथम उल्लेखनीय है-ग्युरिनाट । उनका महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ 'एसे डि बिब्लियाग्राफि जैन' पेरिस से १६०६ ई० में प्रकाशित हुआ। इसमें विभिन्न जैन विषयों से सम्बन्धित ८५२ प्रकाशनों के सन्दर्भ निहित हैं। 'जैनों का धर्म' पुस्तक उनकी पुस्तकों में सर्वाधिक चचित रही। यथार्थ में फ्रांसीसी विद्वान् विशेषकर ऐतिहासिक तथा पुरातात्त्विक विषयों पर शोध व अनुसन्धान कार्य करते रहे। उन्होंने इस दिशा में जो महत्त्वपूर्ण कार्य किये, वे आज भी उल्लेखनीय हैं। ग्युरिनाट ने जैन अभिलेखों के ऐतिहासिक महत्त्व पर विशेष रूप से प्रकाश डाला है। उन्होंने जैन ग्रन्थ सूची निर्माण के साथ ही उन पर टिप्पण तथा संग्रहों का भी विवरण प्रस्तुत किया था।' वास्तव में साहित्यिक तथा ऐतिहासिक अनुसन्धान में ग्रन्थ-सूचियों का विशेष महत्त्व है। यद्यपि १८६७ ई० में जर्मन विद्वान् अर्नेस्ट ल्युपन ने 'ए लिस्ट आव द मैन्युस्क्रिप्ट्स इन द लायब्रेरी एट स्ट्रासवर्ग' वियेना ओरियन्टल जर्नल, जिल्द ११, पृ० २७६ में दो सौ हस्तलिखित दिगम्बर जैन ग्रन्थों का परिचय दिया था, किन्तु ग्युरिनाट के पश्चात् इस दिशा में क्लाट (Klatt) ने महान कार्य किया था। उन्होंने जैन ग्रन्थों की लगभग ११००-१२०० पृष्ठों में मुद्रित होने योग्य अनुक्रमणिका तैयार की थी, किन्तु दुर्भाग्य से उस कार्य के पूर्ण होने के पूर्व ही उनका निधन हो गया। वेबर और अर्नेस्ट ल्युमन ने 'इण्डियन एन्टिक्वेरी' में उस बृहत् संकलन के लगभग ५५ पृष्ठ नमूने के रूप में मुद्रित कराए थे। भारतवर्ष में इस प्रकार का कार्य सर्वप्रथम बंगाल की एशियाटिक सोसायटी के माध्यम से प्रकाश में आया। १८७७ ई० में राजेन्द्रलाल मिश्र ने 'ए डिस्क्रिप्टिव केटलाग आव् संस्कृत मैन्युस्क्रिप्ट्स इन द लाइब्रेरी आव् द एशियाटिक सोसायटी आव् बेंगाल' कलकत्ता से प्रकाशित किया था, जिसमें कुछ प्राकृत तथा अपभ्रंश ग्रन्थों के नाम भी मिलते हैं। मुख्य रूप से इस महत्त्वपूर्ण कार्य का प्रारम्भ इस क्षेत्र में भण्डारकार के प्रकाशित 'लिस्ट्स आव् संस्कृत मैन्युस्क्रिष्ट्स इन प्राइवेट लाइब्रेरीज इन द बाम्बे प्रेसीडेन्सी' ग्रन्थ से माना जाता है। इसी शृंखला में सुपार्श्वदास गुप्त द्वारा सम्पादित 'ए केटलाग आव् संस्कृत, प्राकृत एण्ड हिन्दी वर्क्स इन द जैन सिद्धान्त भवन, आरा' (१९१६ ई०) एवं दलाल और लालचन्द्र म. गांधी द्वारा
१. द्रष्टव्य है : 'द कन्ट्रिब्युशन आव फ्रेन्च एण्ड जर्मन स्कालर्स टु जैन स्टडीज' शीर्षक लेख, प्रकाशित आचार्य भिक्ष
स्मृति-ग्रन्थ, कलकत्ता, १९६१, पृ० १६६ २. मुनिश्री हजारीलाल स्मृति-ग्रन्थ में प्रकाशित, गोपालनारायण बहुरा का लेख 'जैन वाङमय के योरपीय संशोधक',
पृ० ७४७-४८ द्रष्टव्य है।
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