Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
अपभ्रश साहित्य में कृष्णकाव्य
४६५
.
............................................
.
.
......
.
.
...
.
.
....
सुरक्षित है। इसके अतिरिक्त 'सिद्धहेम'(८-४-४२०, २) में जो दोहा उद्धृत है वह भी मेरी समझ में बहुत करके गोविन्द के ही उसी काव्य के ऐसे ही सन्दर्भ में रहे हुए किसी छन्द का उत्तरांश है। 'स्वयम्भूच्छन्द' में दिया गया गोविन्दकृत वह दूसरा छन्द इस प्रकार है (कुछ अंश हेमचन्द्र वाले पाठ से लिया गया है ; टिप्पणी में पाठान्तर दिए गए हैं)
एक्कमेक्कउ' जइ वि जोएदि । हरि सुठु वि आअरेग तो वि देहि जहि कहिं वि राही।
को सक्कइ संवरेवि दड्ढ णयण हे पलुट्टा ॥ (स्वच्छ० ४-१०-२) "एक-एक गोपी की ओर हरि यद्यपि पूरे आदर से देख रहे हैं तथापि उनकी दृष्टि वहीं जाती है जहाँ कहीं "राधा होती है । स्नेह से झुके हुए नयनों का संवरण कौन कर सकता है भला?" इसी भाव से संलग्न 'सिद्धहेम' में उद्धत दोहा इस प्रकार है
हरि नच्चाविउ अंगणइ विम्हइ पाडिउ लोउ ।
एवंहिं राह-पओहराहं जं भावइ तं होउ ॥ 'हरि को अपने घर के प्रांगण में नचा कर राधा ने लोगों को विस्मय में डाल दिया। अब तो राधा के पयोधरों का जो होना हो सो हो ।'
स्वम्भूच्छन्द' में उद्धृत बहुरूपा मात्रा के उदाहरण में कृष्णविरह में तड़पती हुई गोपी का वर्णन है। पद्य इस प्रकार है
देइ पाली थणहं पन्भारे तोडेप्पिणु पालिणिदलु हरिविओअसंतावें तत्ती।
फलु अण्णुहि पावियउ करउ दइअ जं किपि रुच्चइ ।। (स्वच्छ ० ४-११-१) 'कृष्णवियोग के सन्तान से तप्त गोपी उन्नत स्तनप्रदेश पर नलिनीदल तोड़कर रखती है। उस मुग्धा ने अपनी करनी का फल पाया। अब दैव चाहे सो करे।'
हेमचन्द्र के 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र' ८-५ में किया गया वर्णन इससे तुलनीय है-गोपियों के गीत के साथ बालकृष्ण नृत्य करते थे और बलराम ताल बजाते थे। मानो इससे ही संलग्न हो ऐसा मत्तबालिका मात्रा का उदाहरण है
कमलकुमुआण एक्क उप्पत्ति ससि तो वि कुमुआअरहं देह सोक्खु कमलहं दिवाअरु ।
पाविज्जइ अवस फलु जेण जस्स पासे ठवेइउ ॥ (स्वच्छ० ४-६-१) 'कमल और कुमुद दोनों का प्रभवस्थान एक ही होते हुए भी कुमुदों के लिए चन्द्र एवं कमलों के लिए सूर्य सुखदाता है । जिसने जिसके पास धरोहर रखी हो उसको उसी से अपने कर्मफल प्राप्त होते हैं।'
___ मत्तमधुकरी प्रकार की मात्रा का उदाहरण सम्भवत: देवकी कृष्ण को देखने को आई उसी समय के गोकुल वर्णन से सम्बन्धित है । मूल और अनुवाद इस प्रकार है
ठामठामहि घाससंतुट्ठ रतिहि परिसंठिआ रोमथएवसचलिअगंडआ। दीसहि धवलुज्जला जोव्हाणिहाणा इव गोहणा ॥ (स्वच्छ० ४-५-५)
पाठान्तर : १. सव्व गोविउ, २. जोएइ, ३. सुठ्ठ सव्वायरेण, ४. देइ दिट्ठि, ५. डड्ढ ६. नयणा, ७. नेहि
८. पलोट्टउ १. रहीम के प्रसिद्ध दोहे का भाव यहाँ पर तुलनीय है
जल में बसे कमोदनी चंदा बसे अकास । जो जाहिं को भावता सो ताहिं के पास ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org