Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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अपभ्रंश साहित्य में कृष्णाव्य
सिंहासन पर फिर से बैठाया। जीवयशा जरासन्ध के पास जा पहुँची । कृष्ण ने विद्याध कुमारी सत्यभामा' के साथ और बलराम ने रेवती के साथ विवाह किया ।
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कंसवध का बदला लेने के लिए जरासन्ध ने अपने पुत्र कालयवन को बड़ी सेना के साथ भेजा । सत्रह बार यादवों के साथ युद्ध करके अन्त में वह मारा गया । तत्पश्चात् जरासन्ध का भाई अपराजित तीन सौ छियालिस बार युद्ध करके कृष्ण के बाणों मारा गया। तब प्रचण्ड सेना लेकर स्वयं जरासन्ध ने मथुरा की ओर प्रयाण किया । इसके भय से अठारह कोटि यादव मथुरा छोड़ कर पश्चिम दिशा की ओर चल पड़े। जरासन्ध ने उनका पीछा किया। विन्ध्याचल के पास जब जरासन्ध आया तब कृष्ण की सहायक देवियों ने अनेक चिताएँ रचीं और वृद्धा के रूप लेकर उन्होंने जरासन्ध को समझा दिया कि उसके डर से भागते हुए यादव कहीं शरण न पाने से सभी जलकर मर गए । इस बात को सही मानकर जरासन्ध वापिस लौटा। जब यादव समुद्र के निकट पहुँचे तब कृष्ण और बलराम की तपश्चर्या से प्रभावित इन्द्र ने गौतम देव को भेजा। उसने समुद्र को दूर हटाया । वहाँ पर समुद्रविजय के पुत्र एवं भावी तीर्थंकर नेमिनाथ की भक्ति से प्रेरित कुबेर ने द्वारका नगरी का निर्माण किया । उसने बारह योजन लम्बी और नव योजन चौड़ी इस वज्रमय कोट से युक्त नगरी में सभी के लिए योग्य आवास बनाए और को अनेक दिव्य शस्त्रास्त्र, रथ आदि में भेंट किए।
कृष्ण
यहाँ पर पूर्व-कृष्णचरित्र समाप्त होता है। उत्तर-कृष्णचरित्र के मुख्यतः निम्न विषय थे :
रुक्मिणीहरण, साम्ब प्रम्न उत्पत्ति, जाम्बवतीपरिणय, कुरुवंशोत्पत्ति, द्रौपदीलाभ, कीचकवध, प्रद्युम्नसमागम, शाम्बविवाह, जरासन्ध के साथ युद्ध एवं पाण्डव-कौरव युद्ध, कृष्ण का विजयोत्सव, द्रौपदीहरण, दक्षिणमथुरा-स्थापना, मिनियम, केवलज्ञानप्राप्ति, धर्मोपदेश, बिहार, द्वारावतीविनाश, कृष्ण की मृत्यु, बलराम की तपश्चर्या, पाण्डवों की प्रव्रज्या और नेमिनिर्वाण ।
भिन्न-भिन्न अपभ्रंश कृतियों में उपर्युक्त रूपरेखा से कतिपय बातों में अन्तर पाया जाता है । यथाप्रसंग उनका निर्देश किया जायगा ।
अब हम कृष्ण विषयक विभिन्न अपभ्रंश रचनाओं का परिचय करें ।
अपभ्रंश साहित्य में अनेक कवियों की कृष्णविषयक रचनाएँ हैं। जैन कवियों में नेमिनाथ का चरित्र अत्यन्त रूढ़ और प्रिय विषय था और कृष्णचरित्र उसी का एक अंश होने से अपभ्रंश में कृष्णकाव्यों की कोई कमी नहीं है । यहां पर एक सामान्य परिचय देने की दृष्टि से कुछ प्रमुख अपभ्रंश कवियों की कृष्णविषयक रचनाओं का विवेचन और कुछ विशिष्ट अंश प्रस्तुत किया जाता है। इनमें स्वयम्भू पुष्पदन्त, हरिभद्र और धवल की रचनाएँ समाविष्ट हैं । पुष्पदन्त की कृति के सिवा सभी कृतियाँ अभी अप्रकाशित हैं । हस्तप्रतियों के आधार पर उनका अल्पाधिक परिचय यहाँ पर दिया जा रहा है ।
स्वयम्भू के पूर्व
नवीं शताब्दी के अपभ्रं महाकवि स्वयम्भू के पूर्व की कृष्णविषयक अपभ्रंश रचनाओं के बारे में हमारे पास जो ज्ञातव्य है वह अत्यन्त स्वल्प और त्रुटक है। उसके लिए जो आधार मिलते हैं वे ये हैं- स्वयम्भूकृत छन्दोग्रन्थ 'स्वयम्भूच्छन्द' में दिए गए कुछ उद्धरण और नाम; भोजकृत 'सरस्वतीकण्ठाभरण' में प्राप्त एकाच उद्धरण, हेमचन्द्रकृत
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१. त्रिषष्टि० के अनुसार सत्यभामा कंस की बहन थी ।
२. त्रिषष्टि० के अनुसार पहले जरासन्ध समुद्रविजय पर कृष्ण और बलराम को उसको सौंप देने का आदेश भेजता है । समुद्रविजय इस आदेश का तिरस्कार करता है । बाद में ज्योतिषी की सलाह से यादव मथुरा छोड़कर चल देते है । जरासन्ध का पुत्र काल यादवों को मारने की प्रतिज्ञा करके अपने भाई यवन और सहदेव को साथ लेकर यादवों का पीछा करता है । रक्षक देवियों द्वारा दिए गए यादवों के अग्निप्रवेश के समाचार सही मानकर वहं प्रतिज्ञा की पूर्ति के लिए स्वयं अग्निप्रवेश करता है।
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