Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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प्राकृत कथा साहित्य का महत्व
डॉ. उदयचन्द्र जैन, प्राध्यापक, जैन विद्या एवं प्राकृत विभाग, उदयपुर विश्वविद्यालय, उदयपुर
प्राकृत साहित्य की लोकप्रियता उसके सर्वोत्कृष्ट कथा-साहित्य के ऊपर आश्रित है। मानव-जीवन का सहज आकर्षण इसी विधा पर है। क्योंकि कथा-साहित्य में मानव-जीवन के सत्य की अभिव्यंजना, कला-माधुर्य और उत्कण्ठा की सार्वभौमता स्पष्ट रूप से झलकती है। मानव को सुसंस्कृत संस्कारों के साथ उल्लास-भरी दृष्टि इसी से प्राप्त होती है । जब हम अपनी दृष्टि सीमित क्षेत्र को छोड़कर उन्मुक्त पक्षी की तरह फैलाते हैं, तब हमें प्राचीनता में भी नवीनता का अभास होने लगता है। जिसे आज हम प्राचीन कहते हैं, वह कभी तो नवीन रूप को लिए होगी। आज जो कुछ है, वह पहले नहीं था, यह कहना मात्र ही हो सकता है। जो आज हमारे सुसंस्कृत एवं धार्मिक विचार हैं, वे सब प्राचीनता एवं हमारी संस्कृति के ही द्योतक हैं।
मानव के हृदय-परिवर्तन के लिये कथानकों का ही माध्यम बनाया जाता है। उपनिषद्, वेद, पुराणों में जो आख्यान हैं, वे निश्चित ही गूढार्थ का प्रतिपादन करते हैं। पुराण-साहित्य का विकास वेदों की मूलभूत कहानियों के आधार पर हुआ है। पंचतन्त्र, हितोपदेश, बृहत्कथामंजरी, कथासरितसागर आदि संस्कृत आख्यान एवं बौद्ध-जातककथाएँ विशेष महत्त्वपूर्ण मानी गई हैं । फिर भी प्राकृत कथा साहित्य ने जो कथा-साहित्य के विकास में योगदान दिया वह कम महत्त्वपूर्ण नहीं है।
प्राकृत कथा साहित्य बहुमुखी कारणों को लिये हुए है। जैन-आगम परम्परा का साहित्य कथा एवं आख्यानों से भरा हुआ है । नायाधम्मकहा, उवासगदसाओ, अंतगड, अनुत्तरोपातिक, विवागसुत्त आदि अंग ग्रन्थों की समग्र सामग्री कथात्मक है। इसके अतिरिक्त ठाणांग, सूयगडंग आदि अनेक रूपक एवं कथानकों को लिए हुए सिद्धान्त की बात का विवेचन करते हैं, जो प्रभावक एवं मानव-जीवन के विकास के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माने गये हैं। प्राकृत कथा साहित्य
ईसा की चौथी शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी तक प्राकृत कथा साहित्य का विशेष विवेचन के साथ निर्माण होता रहा है। आज प्राकृत कथा साहित्य इतने विपुल रूप में है कि इसके शोध के १०० वर्ष भी कम पड़ जायेंगे। इस साहित्य में समाज, संस्कृति, सभ्यता, राजनीति-चित्रण, मन्त्र-तन्त्र एवं आयुर्वेद आदि विषयों का विवेचन पर्याप्त रूप में प्राप्त होता ही है, साथ ही प्रेमाख्यानों की भी अधिकता है। कई ऐसे गम्भीर हृदय को ओत-प्रोत करने वाले विचारों का भी चित्रण किया गया है।
जैन प्राकृत कथा-साहित्य अन्य कथा-साहित्य की अपेक्षा समृद्ध भी है। जैन कथा साहित्य में तीर्थंकरों, श्रमणों एवं शलाकापुरुषों के जीवन का चित्रण तो हुआ ही है, परन्तु कथानकों के साथ आत्मा को पवित्र बनाने वाले साधनों का भी प्रयोग किया गया है । धामिक कहानियाँ प्रारम्भ में अत्यन्त रोमांचकारी होती हैं और आगे कथानक की रोचकता के साथ दुःखपूर्ण वातावरण से हटकर सूखपूर्ण वातावरण में बदल जाती है। प्रत्येक कथा का कथानक एकांगी न होकर बहुमुखी होता है, जिसमें भूत, भविष्यत और वर्तमान के कारणों का भी स्पष्ट उल्लेख मिलता है। देश, काल के अनुसार कथानक में सामाजिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक एवं प्राकृतिक चित्रण का पी पूर्ण समावेश देखा जाता है, जिससे हमें तत्कालीन विशेषताओं का भी प्रर्याप्त बोध हो जाता है।
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