Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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जैन गणित : परम्परा और साहित्य
४१७.
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गया है। द्वीप, समुद्र, पर्वत का संख्या से ही व्यास और परिक्षेत्र (विस्तार) ज्ञात किया जाता है। संसार की सब बातें गणित पर आश्रित हैं
लौकिके वैदिके चापि तथा सामाजिके च यः । व्यापारस्तत्र सर्वत्र संख्यानमुपयुज्यते ॥६॥ कामतंत्रेऽर्थशास्त्रे च गांधर्वे नाटकेऽपि वा। सूपशास्त्रे तथा बैद्य वास्तुविद्यादि वस्तुषु ॥१०॥
छन्दोऽलंकारकाव्येषु तर्कव्याकरणादिषु । (टीका) लिखी है। इसमें ली
कलागुणेषु सर्वेषु प्रस्तुतं गणितं पुरा ॥११॥ ज्योतिष पर इन्होंने सूर्यादिग्रहचारेषु ग्रहणे ग्रहसंयुतौ। लघनमस्कारचक्र, ऋषिमंडलयंत्र त्रिप्रश्ने चन्द्रवृत्तौ च सर्वत्रांकीकृतं हि तत् ॥१२॥ सिद्ध-भ-पद्धति- अज्ञातकर्तृक सागरशैलानां संख्या-व्यासपरिक्षिपः ।
॥१३॥ इस पर दिगम्बर वीरसेन गर्य व्यंतरज्योतिर्लोककल्पाधिवासिनाम
ना काणां च सर्वेषां श्रेणीबद्धेन्द्रकोत्तरा।
णकप्रमाणाद्या बुध्यते गणितेन तु ॥१४॥ प्राणिनां तत्र संस्थानामायुरष्टगुणादयः । यात्राद्यास्संहिताद्याश्च सर्वे ते गणिताश्रयाः ॥१५॥ बहुभिविप्रलापः किं त्रैलोक्ये सचराचरं ।
यत्किचिद्वस्तु तत्सर्व गणितेन विना न हि ॥१६॥ महावीराचार्य के मत में तीर्थंकरों की वाणी से गणित का उद्भव हुआ है। तीर्थंकरों के शिष्य-प्रशिष्यों द्वारा प्रकट 'संख्याज्ञानरूपसागर' से समुद्र से रत्न, पाषाण से सुवर्ण और शुक्ति से मोती निकालने के समान कुछ सार लेकर इस ग्रन्थ की रचना की है । यह ग्रन्थ छोटा होने पर भी विस्तृत अर्थ को बताने वाला है
तीर्थकृभ्यः कृतार्थेभ्यः पूज्येभ्यो जगदीश्वरैः । तेषां शिष्यप्रशिष्येभ्यः प्रसिद्धाद्गुरुपर्वतः ॥१७॥ जलधेरिव रत्नानि पाषाणादिव कांचनम् । शुक्तेमुक्ताफलानीव संख्याज्ञानमहोदधेः ॥१८॥ किंचिदुद्धृत्य तत्सारं रक्ष्येऽहं मतिशक्तितः ।
अल्पग्रन्थमनल्पार्थ गणितं सारसंग्रह ॥१६॥ प्रथम संज्ञाधिकार के अन्त में पुष्पिका दी है'इतिसारसंग्रहे गणितशास्त्रे महावीराचार्यकृतौ संज्ञाधिकारः समाप्तः ।
यह ग्रन्थ प्रो० रंगाचार्य कृत अंग्रेजी टिप्पणियों के साथ सम्पादित होकर मद्रास से सन् १९१२ में प्रकाशित हो चुका है।
इसमें प्रकरण हैं-संज्ञाधिकार, परिकर्मव्यवहार, कलासवर्णव्यवहार, प्रकीर्णव्यवहार, त्रैराशिकव्यवहार, मिश्रकव्यवहार, क्षेत्रगणितव्यवहार, खातव्यवहार और छायाव्यवहार ।
इसमें २४ अंक तक की संख्याओं का उल्लेख है-१ एक, २ दश, ३ शत, ४ सहस्र, ५ दशसहस्र, ६ लक्ष, ७ दशलक्ष, ८ कोटि, ६ दशकोटि, १० शतकोटि, ११ अर्बुद, १२ न्यर्बुद, १३ खर्व, १४ महाखर्व, १५ पद्म, १६ महापद्म, १७ क्षोणी, १८ महाक्षोणी, १६ शंख, २० महाशंख, २१ क्षिति, २२ महाक्षिति, २३ क्षोभ, २४ महाक्षोभ ।
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