Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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तेरापंथ-दर्शन
मुनि श्री उदितकुमार
( युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के शिष्य )
विश्व के दर्शनों में जैन दर्शन बहुत महत्त्वपूर्ण दर्शन हैं । जैन दर्शन ही तेरापंथ दर्शन है। जैन दर्शन की व्याख्या ही तेरापंथ दर्शन की व्याख्या है ।
तेरापंथ की स्थापना तत्कालीन साधु संस्थानों की शिथिलता को देखकर आचार्य भिक्षु ने की । आचार्य भिक्षु ने संवत् १८०८ में आचार्य रघुनाथजी के पास स्थानकवासी सम्प्रदाय में दीक्षा ली। कई वर्षों तक शास्त्रों का गहन अध्ययन किया, गहन अध्ययन कर लेने के पश्चात् उन्हें लगा कि वर्तमान का साधु समाज भगवान महावीर की वाणी के अनुसार नहीं चल रहा है।
आचार्य भिक्षु ने शास्त्रों के आधार पर तत्कालीन साधु समाज की साधना से ३०६ बोलों का फर्क निकाला। उन्होंने संवत् १८१७ में बगड़ी में शुद्ध साधुत्व पालन के लिए अभिनिष्क्रमण किया । आचार्य रघुनाथजी ने समझाने की निष्फल चेष्टा की उन्होंने कहा- तुम्हें समय देखकर चलना चाहिये इस समय इतनी कठोर चर्या की बात किसी प्रकार से निभ नहीं सकती, अतः निरर्थक हठ छोड़कर मेरे साथ संघ में आ जाओ ।
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स्वामीजी ने कहा- समय के बहाने से शिथिलाचार को प्रश्रय देना उचित नहीं हो सकता। इस समय भी साधु-चर्या के कठोर नियम उसी प्रकार निभाये जा सकते हैं जिस प्रकार कि पहले निभाये जाते थे। इसी विश्वास के आधार पर हम लोग जिन-आज्ञा के अनुसार शुद्ध संयम पालना चाहते हैं। आप अगर ऐसे चलें तो आप गुरु और मैं बेला हूँ और जीवन भर रहूंगा। अगर मिथिलाचार में रहना है तो हमारा रास्ता अलग है ही आचार्य भिक्षु के शब्दों में ओज था, अतुल आत्मबल था ।
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आचार्य भिक्षु की विचार कान्ति के मूलभूत सूत्र हैं
१. साध्य और साधन - आचार्य भिक्षु ने कहा- साध्य और साधन दोनों शुद्ध होने चाहिये । हमारा साध्य है मोक्ष और उसका साधन है—संबर और निर्जरा। इसके द्वारा ही मोक्ष प्राप्त होता है । साध्य हमारा शुद्ध हो और साधन अगर हिंसा, परिग्रह आदि अशुद्ध हों तो तो साध्य की प्राप्ति नहीं होगी, पाप कभी मोक्ष का साधन नहीं बन सकता । पाप भी यदि मुक्ति का साधन बन जावे तो पाप और मुक्ति में कोई भेद नहीं रहेगा । अतः ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप के सिवाय कोई भी मुक्ति का उपाय नहीं है। इसलिए ये चार ही धर्म हैं। शेष सब बन्धन के हेतु हैं । वे मोक्ष के हेतु नहीं बन सकते ।
२. करण योग -- आचार्य भिक्षु ने कहा- जो कार्य करना साध्य के अनुकूल नहीं है, उसे करवाना व
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आचार्य भिक्षु की विचार - कान्ति
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