Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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तेरापंथी जैन व्याकरण साहित्य
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लक्ष्मण के स्थान पर लक्षण शब्द है-लक्षणोरु ।
कर्म संज्ञा नित्य होती है, अत: केवल मासमास्ते बनता है।
इस शब्द से कोई विधान नहीं है। यह विधान नहीं है अत: कर्म की अविवक्षा में पाचयति चैत्रेण यह रूप निष्पन्न होता है।
तृतीया विभक्ति का विधान नहीं है।
षष्ठी विभक्ति नित्य होती है।
अग्रे और अन्त शब्दों से नहीं होता है।
अग्र आदि शब्द समस्त नहीं होते ।
११. पूर्वपद में लक्ष्मण शब्द हो तो ऊरु शब्द से ऊड़ समा
सान्त प्रत्यय होता है-लक्ष्मणोरु । १२. अकर्मक धातुओं के योग में काल, अध्वा, भाव और
देश के आधार की कर्म संज्ञा विकल्प से होती है
मास आस्ते, मासे आस्त । १३. येन तेन शब्द के योग में द्वितीया विभक्ति होती है । १४. अविवक्षित कर्मवाली धातुओं के अधिन अवस्था के
कर्ता की विकल्प से कर्म संज्ञा होती है। पाचयति
मैत्रः चैत्रं चैत्रेण वा । १५. द्वि द्रोण आदि शब्दों से वीप्सा अर्थ में तृतीया और
द्वितीया दोनों विभक्तियाँ होती हैं-द्वि द्रोणेन,
द्वि द्रोणं-द्विद्रोणं वा धान्यं क्रीणाति । १६. भाव में विहित क्त प्रत्यय के योग में वैकल्पिक षष्ठी
छात्रस्य छात्रेण वा हसितम् १७. पारे, मध्ये, अग्रे और अन्तः इन शब्दों का षष्ठ्यन्त ___के साथ समास होता है। १८. द्वि, त्रि, चतुष् और अग्र आदि शब्द अभिन्न अंशी
वाचक शब्दों के साथ समस्त होते हैं। १६. तृतीयान्त अर्ध शब्द चतस शब्द के साथ विकल्प से
समस्त होता है। २०. परः शता, परः सहस्रः, परो लक्षा, सर्वपश्चात्, समर
सिंहः पुनः प्रवृद्धम्, कृतापकृतम् भुक्ता भुक्तम् आदि
शब्दों में समास का विधान है। २१. बहुब्रीहि समास में संख्यावाची अध्यर्ध शब्द पूरणार्थक
प्रत्ययान्त अर्ध शब्द विकल्प से समस्त होते हैं-अध्यर्ध
विंशा, अर्धपंचम विशाः। २२. मास, ऋतु, भ्रातृ और नक्षत्रवाची शब्दों में क्रमशः प्राग
निपात होता है। २३. समास मात्र में संख्यावाची शब्दों में क्रमश: प्राग निपात
___ होता है। २४. ओजस्, अजस्, अम्भसे, तपस् और तमस् से परे तृतीया
विभक्ति का लुक नहीं होता। २५. अप शब्द से परे सप्तमी विभक्ति का लुक् नहीं होता य
योनि मति और चर शब्द परे हो तो।
यह विधान नहीं है।
इनके सम्बन्ध में कोई विधान नहीं है।
समास का विधान नहीं है।
मास शब्द नहीं है
यह नियम नहीं है।
तपस् शब्द नहीं है ।
मति और चर शब्द नहीं है
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