Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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जैन मन्त्रशास्त्रों की परम्परा और स्वरूप 0 श्री सोहनलाल गौ० देवोत [व्याख्याता-राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय लोहारिया, जिला बासंवाड़ा (राज.)]
शब्द की शक्ति पर विचार करने पर हमारा ध्यान भारतीय मन्त्रशास्त्र पर जाता है। हमारे प्राचीन धर्मग्रन्थ मन्त्रों की महिमा से भरे पड़े हैं किन्तु हमारे यहाँ अनेक लोगों में यह भ्रम फैला हुआ है कि यह भाग अन्धविश्वास के अलावा कुछ नहीं है तथा बहुत से व्यक्ति इस साहित्य को घृणा की दृष्टि से देखते हैं। जिस प्रकार पाश्चात्य वैज्ञानिक एवं विद्वान विज्ञान की सभी शाखाओं की खोज कर रहे हैं और वास्तविकता का पता लगाने के लिए तन, मन, धन सब कुछ अर्पण कर रहे हैं। उसी प्रकार हमारे यहाँ भी शब्द-विज्ञान और उसके अन्तर्गत मन्त्र-विज्ञान की अगर खोज की जाती तो सैकड़ों आश्चर्यजनक तथ्य प्रकाश में आते, जिससे हमारा व्यक्तिगत कल्याण तो होता ही, साथ ही भारतीय संस्कृति एवं साहित्य की एक धारा का स्वरूप भी प्रकाशित होता।
___ जब हम मन्त्र शब्द के अर्थ पर विचार करते हैं तो कुछ ऋषि-मुनियों एवं विद्वानों द्वारा बताये गये अर्थ को समझना पर्याप्त होगा। यास्क मुनि ने कहा है कि "मन्त्रो मननात्", मन्त्र शब्द का प्रयोग मनन के कारण हुआ है। अर्थात् जो पद या वाक्य बार-बार मनन करने योग्य होता है, उसे मन्त्र कहा जाता है। वेदवाक्य बार-वार मनन करने योग्य होने से वे पद एवं वाक्य मन्त्र कहलाये । जैन धर्म के पंचमंगल सूत्र ने इसी कारण महामन्त्र (णमोकार) का उच्च स्थान प्राप्त किया। बौद्ध धर्म की त्रिशरण पद-रचना भी इसी दृष्टि से उत्कृष्ट मन्त्र के रूप में जानी जाती है। अभयदेव सूरि ने पंचाशक नामक ग्रंथ की टीका में बताया है कि “मन्त्रो देवाधिष्ठितोऽसावक्षर रचना विशेषः ।" "देव से अधिष्ठित विशिष्ट अक्षरों की रचना मन्त्र कहलाता है।" पंचकल्पभाष्य नामक जैन ग्रन्थ में बताया है कि 'मतोपुण होई पठियसिद्धो-जो पाठ सिद्ध हो वह मन्त्र कहलाता है। दिगम्बर जैनाचार्य श्री समन्तभद्र ने मन्त्र व्याकरण में कहा है कि 'मन्त्रयन्ते गुप्तं भाष्यन्ते मन्त्रविद्भिरिति मन्त्राः।" जो मन्त्रविदों द्वारा गुप्त रूप से बोला जाय उसे मन्त्र जानना चाहिए।
मन्त्र-तन्त्र ग्रन्थों की विषयगत व्यापकता दर्शनीय है । इन ग्रन्थों का दार्शनिक दृष्टि से अनुशीलन करने पर तीन प्रकार के विमर्श प्रतीत होते हैं-१-द्वत-विमर्श, २-अद्वैत-विमर्श, ३-द्वैताद्वैत-विमर्श । 'देवता-भेद से भी उसके अनेक भेद हैं। जिनमें प्रमुख भेद (१) वैष्णव तन्त्र (२) शैव तन्त्र (३) शाक्त तन्त्र (४) गाणपत्य तन्त्र (५) बौद्धतन्त्र (६) जैन तन्त्र आदि हैं । भेदोपभेद की दृष्टि से उपरोक्त तन्त्रों की अनेक शाखाएँ हैं।
जैन मन्त्र-शास्त्रों की परम्परा-भारतीय मन्त्र-शास्त्र की इस विशाल परम्परा में अन्य सम्प्रदायों की तरह जैन सम्प्रदाय में भी मन्त्रों से सम्बन्धित शास्त्र प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। जैन मन्त्र-शास्त्र कीप रम्परा अनादि है। जैन धर्म का मूल मन्त्र णमोकार मन्त्र भी एक मन्त्र ही है जो अनादि काल से चला आ रहा है, इस महामन्त्र के सम्बन्ध में यह प्रलोक प्रसिद्ध है
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