Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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संस्कृत जैन व्याकरण-परम्परा
जैन व्याकरण पर न्यास, टीका आदि ग्रन्थ
जैनेन्द्र व्याकरण पर टोकाए
इस व्याकरण पर विचार करते समय स्पष्ट हो चुका है कि जैन परम्परा में यह महत्त्वपूर्ण व्याकरण है । इस पर अनेक विद्वानों ने विभिन्न प्रकार के टीका ग्रन्थों की रचना की। उनमें से कुछ प्रमुख ग्रन्थों पर प्रस्तुत प्रसंग में विचार किया जा रहा है ।
स्वोपज्ञ नेवास
पूज्यपाद स्वयं देवनन्दी ने जैनेन्द्र व्याकरण पर स्वोपज्ञ न्यास की रचना की। भिमोगा जिले में प्राप्त एक शिलालेख में इसका उल्लेख मिलता है। वह इस प्रकार है
सकलबुधनतं पाणिनीयस्य भूमो
न्यास जैनेन्द्र ग्यास शब्दावतारं मनुजततिहितं वेदशास्त्रं च कृत्वा ॥
इससे प्रकट होता है उन्होंने पाणिनीय व्याकरण पर भी न्यास ग्रन्थ लिखा था। पर इस समय ये ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हैं ।
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महावृत्ति
अभयनन्दी दिगम्बर परम्परा के मान्य आचार्य थे। इनका समय वि० सं० की ८वीं ध्वीं शताब्दी माना जाता है। डॉ० बेल्वलकर ने इनका समय ७५० ई० बताया है। इन्होंने जैनेन्द्र व्याकरण पर महावृत्ति की रचना की। इस व्याकरण की उपलब्ध सभी टीकाओं में यह सर्वाधिक प्राचीन है। पंचवस्तु टीका के कर्ता ने इसका महत्त्व बताते हुए जैनेन्द्र व्याकरण रूप महल के किवाड़ की उपमा की है। यह वृत्ति ११ हजार श्लोक परिमाण है । डॉ० गोकुलचन्द जैन ने इसकी अनेक विशेषताओं का उल्लेख किया है।"
शब्दाम्भोजभास्करन्यास
इस व्यास ग्रन्थ की रचना दिगम्बराचार्य प्रभाचन्द्रजी ने की ये ११वीं शताब्दी के प्रसिद्ध विद्वान् थे । इन्होंने अपने इस न्यास ग्रन्थ में दार्शनिक शैली अपनायी है । इस ग्रन्थ के ४ अध्याय, ३ पाद तथा २११ हस्तलिखित प्रतियाँ उपलब्ध होती हैं। वैसे यह ग्रन्थ १६,००० श्लोक परिमाण था ।
सूत्र तक की
यह टीका ग्रन्थ जैनेन्द्र व्याकरण पर प्रक्रिया ग्रन्थ है। यह ३३०० श्लोक परिमाण है । ग्रन्थ में होने के कारण व्याकरण के प्रारम्भिक अध्येताओं के लिए बहुत उपयोगी है। इसे इस व्याकरण का बताया गया है -
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१. सिस्टम्स आफ ग्रामर, पैरा ५०.
२. संस्कृत - प्राकृत जैन व्याकरण और कोश परम्परा, ५६.
३. (अ) जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-५, पृ० १२;
(आ) युधिष्ठिर मीमांसक संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास, भाग १, पृ० ५६३
(इ) संस्कृत - प्राकृत जैन व्याकरण और कोश परम्परा, पृ० १३५.
टीकामानमिहाररचितं
जैनेन्द्र शब्दागमं ।
प्रासादं पृथुपंचवस्तुकमिदं सोपानमा रोहताम् ॥
इसके रचनाकार का नाम नहीं मिलता है । सन्धिप्रकरण में एक स्थान पर "सन्धिं त्रिधा कथयति श्रुतकीर्तिरार्यः " यह पंक्ति मिलती है। इससे अनुमान लगाया जाता है कि इसके रचयिता श्रुतकीर्ति रहे होंगे । इनका समय १२वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध माना गया है। अतः इस ग्रन्थ का रचनाकाल भी यही रहा होगा । 3
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वस्तु टीका सरल शैली सोपान का
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