Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
तेरापंथ और अनुशासन
३११
-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-..................................................
गुरुदेव के वेंत न होने से चातुर्मास नहीं हुआ। किन्तु हम आपको यहाँ नहीं रख सकते । आपका चातुर्मास जहाँ फरमाया हुआ है, वहीं पर आपको करना होगा । सन्तों ने घुटने की ओर इशारा करते हुए कहा----दर्द है कैसे चलूं ? जुहारमलजी ने स्पष्ट शब्दों में कहा---सुनो महाराज ! घुटने का दर्द तो बहाना मात्र है, वहाँ जाने की आपकी इच्छा नहीं है, ऐसा हमें लगता है। अपने संघ में ऐसा नहीं चल सकता। यहाँ तो गुरु-आज्ञा प्रधान है। अनुशासन प्रधान है। अत: या तो अच्छी तरह से विहार कर निर्णीत स्थान पधार जाइये, अगर ऐसा नहीं करना चाहते हो तो पुस्तक पात्र आदि संघ के हैं उन्हें तो यहाँ रख दीजिए फिर जहाँ मर्जी हो वहाँ जाइए, हमें कोई एतराज नहीं । यह सुनते वहाँ से सन्त ऐसे चले मानो घुटने में दर्द था ही नहीं।
इस प्रकार तेरापन्थ के इतिहास के हर पृष्ठ पर हमें अनुशासन की छाप मिलेगी। साधु-साध्वियों के साथ धावक-श्राविकाएँ भी संघीय मर्यादा के प्रति, अनुशासन के प्रति सजग रहे थे और आज भी सजग हैं, अनुशासन भंग करने वालों को यहाँ सब ओर से टोका जाता है। चाहे बहुश्रुत भी क्यों न हो ?
यही कारण है दो सौ वर्ष बीत जाने पर भी धर्मसंघ का अनुशासन वैसा का वैसा कायम है। जब तक अनुशासन कायम रहेगा, तब तक तेरापन्य प्रगति शिखर पर चढ़ता रहेगा । जन-जन का कल्याण करता रहेगा।
XXXXXXX
Xxxxxx
न धावने काऽपि विशेषताऽऽस्ते, दिशावबोधो यदि नास्ति सम्यक् । निर्णीय गन्तव्यपथं यियासोः शनैः शनर्यानमपि प्रशस्तः ।
-वर्द्धमान शिक्षा सप्तशती
(श्री चन्दनमुनि रचित) दिशा का सम्यक् बोध न हो और मनुष्य दौड़ता ही जाय तो उसमें क्या विशेषता है, उससे कोई साध्य सिद्ध न हो सकेगा। गन्तव्य पथ और प्राप्तव्य ध्येय का सम्यक रूप से निर्णय करके धीरे-धीरे भी गमन करे तो लक्ष्य को प्राप्त कर मकता है।
Xxxxxx
X X X X X X X
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org