Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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जैन-दर्शन में मानववादी चिन्तन
1] श्री रतनलाल कामड़ [ग्राम पोस्ट-चंगेड़ी, तहसील-मावली, जिला--उदयपुर (राज.)]
मानववादी-दार्शनिक परम्परा में जैन-दर्शन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस दर्शन में मानव-कल्याणपरक इहलौकिक-मूल्यों का विशद एवं वैज्ञानिक परिशीलन प्रस्तुत किया गया है, जैसे : मानव व उसकी कर्तव्य-परायणता, मानव-मात्र की समानता व उसका विशाल गौरव, चारित्रिक-शुद्धि, स्त्री व शूद्रों का समाज में उचित स्थान, सर्वमंगल की भावना, हिंसक प्रवृत्ति का प्रबल विरोध, प्राकृत : जन-भाषा का प्रयोग, समाजवादी प्रेरणा, सुदृढ़ व स्वच्छ आर्थिक व्यवस्था, विश्व-बन्धुत्व की भावना, आध्यात्मिक व लौकिक मूल्य, भौतिकवादी (जड़वाद) मूल्य, नैतिक दर्शन, रत्नत्रय, पंचमहाव्रत व ईश्वर का मानवीयकरण आदि मानववादी चिन्तनाओं पर विचार-दर्शन प्रस्तुत किया गया है। यहाँ कुछ तथ्यों का संक्षिप्त अध्ययन इस प्रकार है
१. मानव और उसका गौरव जैन दर्शन में मानव-जन्म की महत्ता को अंगीकार किया गया है। यह मानव-जीवन मंगल का प्रतीक है क्योंकि वह अनेक मंगल-कर्मों को सिद्ध करने वाला सर्वशक्तिमान सत्य है। भगवान महावीर ने मानव की गरिमा को सहर्ष स्वीकार किया है : “जब अशुभ-कर्मों का विनाश होता है तभी आत्मा शुद्ध, निर्मल और पवित्र होती है, और तभी उसे मानव-जन्म की प्राप्ति होती है।"१ यह मानव-जीवन भरसक प्रयत्न के पश्चात् ही प्राप्त होता है, यहाँ भगवान् महावीर के पावन-उद्गारों को उद्धृत करना उचित है : “सांसारिक जीवों को मनुष्य का जन्म चिरकाल तक इधर-उधर भटकने के पश्चात् बड़ी कठिनाई से प्राप्त होता है, वह सहज नहीं है। दुष्कर्म का फल बड़ा भयंकर होता है। अतएव हे ! गौतम ! क्षण भर के लिए भी प्रमाद मत कर"। यहाँ भगवान महावीर ने मानवमात्र को सर्वश्रेष्ठ कर्म करने के लिए उपदेश दिये हैं, जिससे मानव अपने परमध्येय को प्राप्त कर सके ।
२. मानव और उसका कल्याण जैन दर्शन में मानव-मूल्यों को महत्ता प्राप्त हुई है, जो आत्मा की निर्मलता, सत्यवादिता, अहिंसा व प्रेम आदि तथ्यों पर अवलम्बित है । मानव ही एक ऐसी विरासत है, जो अमूल्य नैतिक-मूल्यों का सृजक है, उपभोक्ता है । वह शुभ-अशुभ-मूल्यों का उत्तरदायी है। इस दर्शन में जीवन का परम ध्येय-कामनाओं का परित्याग एवं आत्मशुद्धि
१. कम्माणं तु पहाणाए, आणुपुब्बी कयाइ उ। जीवा सोहिमणुप्पत्ता आययंति मणुस्सयं ॥
-उत्तराध्ययन सूत्र ३. ७. २. दुल्लहे खलु माणुसे भवे, चिरकालेण वि सव्वपाणिणं ।
गाढा य विवाग कम्मुणो, समयं गोयम ! मा पमायए ।।--उत्तराध्ययन सूत्र १०.४.
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