Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्थ खण्ड
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__आचार्य भिक्षु ने आचार-क्रान्ति के अन्तर्गत और भी अनेकों सूत्र दिये। जिससे तेरापन्थ आज भी एक आचार, एक विचार, एक आचार्य पद्धति पर दृढ़ता से आगे बढ़ रहा है।
आचार्य भिक्षु अपने लक्ष्य के धनी थे, चारित्रनिष्ठ थे। उन्होंने चारित्र-शुद्धि को सर्वाधिक महत्त्व दिया। आचार्य भिक्षु का संगठन केवल शक्ति प्राप्ति के लिए नहीं था। यह आचार-शुद्धि के लिए था। आचार्य भिक्षु की दृष्टि में आचार की भित्ति पर अवस्थित संगठन का महत्व है। उससे विहीन संगठन का कोई धार्मिक मूल्य नहीं है।
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ये चासवास्तेऽपि परित्रवाः स्युः परिस्रवा आस्रवतां श्रयन्ति । गौणानि बाह्यानि निबन्धनानि, भावानुरूपौ किल बन्धमोक्षो ।।
-वर्द्धमान शिक्षा सप्तशती
(श्री चन्दनमुनि रचित) ---जो आस्रव हैं-कर्मबन्धन के हेतु हैं वे परिस्रव-कर्मों को काटन के हेतु बन जाते हैं। वैसे ही जो परिस्रव हैं, वे आस्रव बन जाते हैं। बाहरी वन्धन गौण हैं । वस्तुतः भावों के अनुसार ही बन्ध तथा मोक्ष होता है।
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