Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन प्रन्थ : प्रथम खण्ड
और हर चहल-पहल में एक ही बात घूमती थी कि क्या यह यह सब क्यों न हो, उनका स्नेह, गुरु-श्रद्धा, त्याग तथा देव पुरुष है ? क्या मनुष्य इतना बड़ा प्रेम का पुजारी अपना बलिदान तो है ही, पर स्वामीजी के क्षेत्र भी होता है ? फिर सोचा, बिना प्रेम के इस ऊषर भूमि में उनके चारों ओर घिरे हुए हों, क्यों न उनका आशीर्वाद उर्वरता भी कैसे आती ? इन्होंने स्नेह का अमृत सींचा उन्हें रात-दिन मिलता है। इधर जन्मभूमि कंटालिया तभी तो इस धरा पर, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव फिर उसके एक तरफ क्रान्ति-भूमि 'सुधरी' फिर एक तरफ हितकारी संघ का जन्म हो गया। यह शून्य भूमि अनोखी चरम-भूमि सिरियारी एवं अन्य भी विहरण क्षेत्र स्वामी चहल-पहल की रौनक पाने लगी । फिर ध्यान में आया भीखणजी के राणावास के चारों ओर घिरे हैं।
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निःस्वाथ सन्त पुरुष
श्री बाबूलाल चुन्नीलाल भंसाली (बम्बई) श्रीमान् के सरीमलजी सुराणा एक कर्मयोगी महान पुरुष कर रहे हैं । युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के शब्दों में आप हैं । आपके गुणों का वर्णन लेखनी द्वारा दर्शाना अतिशयोक्ति संत पुरुष हैं । आपका जीवन समाज के लिए एक उदाहरण ही है । इन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज-सुधार में स्वरूप है। लगा दिया है। राणावास की मरुभूमि में आपने ज्ञान हमारी हार्दिक कामना है कि आप जैसे निःस्वार्थी रूपी सूर्य आलोकित किया है, जिसके फलस्वरूप सैकड़ों कर्मयोगी संतपुरुषों से हमारा समाज पूर्ण रूपेण विकसित अज्ञानी पुरुषों को मार्ग-दर्शन प्राप्त हुआ है । संसार में हो और ज्ञानरूपी सूर्य सदैव प्रकाशित रहे । रहते हुए भी आप एक संत-पुरुष के समान जीवन यापन
00 गण एवं गणपति के प्रति समर्पित
0 श्री तख्तमल इन्द्रावत, (राणावास) श्री सुराणाजी शरीर पर खादी का चोलपट्टा सर्वस्व अर्पण कर देते हैं । और पछेवड़ी, हाथ में रूमाल, आँखों पर चश्मा, नंगे पैर श्री सुराणाजी में जहाँ पाप के प्रति भीरुता, संयम और नंगे सिर रहते हैं। इनका वदन गठीला, कद लम्बा के प्रति जागरूकता और साधना के प्रति दृढ़ और मुद्रा गम्भीर है । ये त्याग-तपस्या के साधक, बौद्धिक- निष्ठा है, वहाँ समाज और राष्ट्र सेवा के प्रति भी पूर्ण आध्यात्मिक शिक्षा के प्रेमी एवं संघर्षमय जीवन के तल्लीनता । (१) श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानवहितकारी धनी व्यक्ति हैं।
संघ, (२) अखिल भारतीय महिला जैन शिक्षण संघ और ये तेरापंथ सम्प्रदाय के विशिष्ट श्रावक हैं। युग- (३) तेरापंथ स्मारक समिति राणवास आदि इनकी मूर्तिमान प्रधान आचार्य श्री तुलसी के सच्चे अनुयायी हैं। आचार- जाज्वल्य संस्थाएं हैं। जिनके माध्यम से प्रतिवर्ष सैकड़ों विचार के कुशल व्यक्ति हैं। ये स्वभाव से बड़े सरल । छात्र-छात्राएँ अपनी मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक एवं पापभीर हैं । अपना पल-पल आत्म-कल्याण में अपित शिक्षा की त्रिवेणी में अवगाहन कर रहे हैं । इनके संचालन करते हैं। इनके कार्य में इनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुन्दरबाई में ये अपना तन-मन और धन ही अर्पण नहीं करते बल्कि का सुन्दर सहयोग है। मणिकांचन का योग है। दोनों दोनों पति-पत्नी अपना स्वेद और रक्त भी बलिदान का प्रसन्न एव सन्तुष्ट जीवन है ।
करते हैं। श्री सुराणाजी तेरापंथी सम्प्रदाय की उन्नति, सुरक्षा धन्य है ऐसे त्यागी, कर्मठ एवं चरित्रवान व्यक्ति एवं समृद्धि में सदैव संलग्न रहते हैं। चाहे वह संत- को। व्यक्ति, समाज और राष्ट्र ऐसे देश-सेवक के कार्य सतियों की सेवा और दर्शन हो या गणपति की सेवा और और सेवा की महत्ता को समझे और उसका उचित दर्शन हो या संघ का कोई आपतकालीन और संघर्षमय सम्मान करें। कार्य, ये तन-मन और धन से उसमें लीन हो जाते हैं और
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