Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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संलेखना : स्वरूप और महत्त्व
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प्रायोपवेशन का अर्थ "अनशनपूर्वक मृत्यु का वरण करना" किया गया है। प्रायोपवेशन शब्द में दो पद हैं-"प्राय" और "उपवेशन'' "प्राय" का अर्थ "मरण के लिए अनशन" और "उपवेशन" का अर्थ है "स्थित होना।"3
प्रायोपवेशन किसी तीर्थस्थान में करने का उल्लेख प्राप्त होता है। महाकवि कालिदास ने तो रघुवंश में स्पष्ट कहा है --''योगेनान्ते तनत्यजाम् । वाल्मीकि रामायण में सीता की अन्वेषणा के प्रसंग में प्रायोपवेशन का वर्णन प्राप्त होता है। जब सुग्रीव द्वारा भेजे गये वानर सीता की अन्वेषणा करने में सफल न हो सके तब अंगद ने उनसे कहा कि हमें प्रायोपवेशन करना चाहिए।
राजा परीक्षित के भी प्रायोपवेशन ग्रहण करने का वर्णन श्रीमद्भागवत में मिलता है। महाभारत, राजतरंगिणी और पंचतन्त्र में भी प्रायोपवेशन का उल्लेख संप्राप्त होता है। रामायण में प्रायोपवेशन के स्थान पर प्रायोपगमन चरक में "प्रायोपयोग" अथवा "प्रायोपेत" शब्द व्यवहृत हुए हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में मृत्यु वरण में योग की प्रधानता स्वीकार की है।"
इस प्रकार वैदिक परम्परा में प्रायोपवेशन जीवन की एक अन्तिम विशिष्ट साधना रही है।
आचारांग में संलेखना के सम्बन्ध में बताया है कि जब श्रमण को यह अनुभव हो कि उसका शरीर ग्लान हो रहा है वह उसे धारण करने में असमर्थ है तब वह क्रमशः आहार संकोच करके शरीर को कृश करें।
१. "प्रायेण मृत्युनिमित्तकअनशनेन उपवेशः स्थिति सन्यासपूर्वकानशनस्थिति : ।"
-शब्द कल्पद्रुम पृ० ३६४. २. "प्रायश्चानशनै मृत्यौ तुल्य बाहुल्ययोरपि इति विश्वः ।" प्रकृष्टमयनम् इति प्रायः प्र+अय+घञ्, मर अर्थमनशनम् ।
- हलायुधकोश, सूचना प्रकाशन ब्यूरो, उ० प्र० । ३. "प्रायोपवेशने अनशनावस्थाने।" ४. रघुवंश १-८-मल्लिनाथ ५. इदानीमकृतार्थानां मर्तव्यं नात्र संशयः ।
हरिराजस्य संदेशमकृत्वा कः सुखी भवेत् ॥१२॥ आस्मिन्नतीते काले तु सुग्रीवेणकृते स्वयम् । प्रायोपवेशनं-युक्तं सर्वेषां च बनौकसाम् ।।१३।। अप्रवृत्ते च सीतायाः पापमेव करिष्यति । तस्मात्क्षमभिहाद्य व गन्तु प्रायापवेशनम् ॥१४॥ अहं वः प्रतिजानामि न गमिष्याम्यहं पुरोम् । इहेव प्रायमासिष्ये श्रेयो मरणेव मे । ॥१५॥
---वाल्मीकि रामायण ४-५५-१२. ६. प्रायोपवेशः राजर्षेविप्रशापात् परीक्षितः ।
-भागवत, स्कंध १२. "प्रायोपविष्टं गंगायां परीतं परिमषिभिः ।" -प्रायेण मृत्यु पर्यन्तानशनेनोपविष्टम् इति तट्टीकाय ।
-श्रीधरस्वामी शब्द कल्पद्रुम् पृ० ३६४ । ७. श्रीमद्भगवद्गीता ८-१२, ८-१३, ८-५, ८-१०, ५-२३ । ८. आचारांग १-८-६७ ।
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