Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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संलेखना : स्वरूप और महत्त्व
२४१ .
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सिस तनाव के कारण और अनेक सामाजिक विसंगति व विषमताओं के कारण आत्मघात की प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं। भौतिकवाद की चकाचौंध में पले-पुसे व्यक्तियों को यह कल्पना भी नहीं हो सकती कि शान्ति के साथ योजनापूर्वक मरण को वरण किया जा सकता है। संलेखना विवेक की धरती पर एक सुस्थित मरण है । संलेखना में केवल शरीर ही नहीं किन्तु कषाय को भी कृश किया जाता है । जब तक शरीर पर पूरा नियन्त्रण नहीं किया जाता वहाँ तक संलेखना की अनुमति प्राप्त नहीं होती । उसमें सूक्ष्म समीक्षण भी किया जाता है। जब मानसिक संयम सम्यक् चिन्तन के द्वारा पूर्ण रूप से पक जाता है तभी संलेखना धारण की जाती है। संलेखना पर जितना गहन चिन्तन-मनन जैन मनीषियों ने किया है उतना अन्य चिन्तकों द्वारा नहीं हुआ। संलेखना के चिन्तन का उद्देश्य किसी प्रकार का लौकिक लाभ नहीं है, उसका लक्ष्य पार्थिव समृद्धि या सांसारिक सिद्धि भी नहीं है अपितु जीवन-दर्शन है । संलेखना जीवन के अन्तिम क्षणों में ही की जाती है पर आत्मघात किसी भी समय किया जा सकता है।
सारं दसण नाणं, सारं तव-नियम-संजम-सोलं । सारं जिणवरधम्म, सारं सलेहणा-मरणं ॥
संसार में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, तप, नियम, संयम, शील जिनधर्म तथा संलेखनापूर्वक मरण ही सार-तत्त्व है।
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