Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन प्रन्य : द्वितीय खण्ड
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पास की पहाड़ी पर नाथ सम्प्रदाय के गोरमनाथ व उनके शिष्य घारमनाथ रहते थे। गोरमनाथ के श्राप से ये चौरासी डटन गाँव नष्ट हो गये । गोरमनाथ का निवास क्षेत्र होने के कारण ही यह पहाड़ी गोरमघाट कहलाती है। इस पहाड़ी की तलहटी में नाथों की अनेक समाधियाँ मिलती हैं। काजलवास आज भी उसका प्रमाण है। सिरियारी के पास सारण गांव में भी गोरखनाथी साधुओं की बहुत सी समाधियाँ मिलती हैं। बताया जाता है कि गोरखनाथी साधुओं को सारण सहित १२ गाँव जागीर में दिये गये थे । आज भी इनका यहाँ एक प्रसिद्ध मठ है ।
यह कांठा क्षेत्र कभी स्वतन्त्र राज्य नहीं रहा । इस क्षेत्र पर सैन्धव राजपूतों, पडिहारों, सोढों, मीणों और रावतों का आधिपत्य रहा । मण्डोर व उसके बाद जोधपुर पर राठौड़ शासकों का स्थायी राज्य कायम हुआ तो यह क्षेत्र भी मारवाड़ राज्य का अंग बन गया तथा कूपावत व चांपावत राठौड़ों की जागीर में इस क्षेत्र के अनेक गाँव रहे।
___ कंटालिया, बगड़ी, आऊआ आदि ऐसी ही जागीरें थीं। इस क्षेत्र के अनेक गाँव सोजत परगने में और चण्डावल के पट्टे में थे। देश के स्वतन्त्रता संग्राम में भी इस क्षेत्र के आऊआ तथा खरवा के ठिकानों ने जो योगदान दिया, वह कांठा क्षेत्र के गौरव की पर्याप्त अभिवृद्धि करता है। स्थान सीमा के कारण उन सब बातों का यहाँ पर वर्णन करना संभव नहीं है।
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विभिन्न गाँव, जातियां और आबादी
कांठा क्षेत्र मुख्यत: गाँवों और कस्बों का क्षेत्र है। इस क्षेत्र में कुल २७५ गाँव सम्मिलित हैं। कोई बड़ा शहर नहीं है । इस क्षेत्र से जुड़ा हुआ बड़ा शहर पाली है। राणावास, कंटालिया, बगड़ी, माण्डा, वोपारी, सारण, सिरियारी, नीमली, गाधाणा, जोजावर, रामसिंहजी का गुड़ा, खींवाड़ा, फुलाद, खारची, धनला, आऊआ आदि इस क्षेत्र के प्रमुख गाँव व कस्बे हैं। कांठा क्षेत्र में गुड़ा के नाम से आरम्भ होने वाले गाँवों की एक लम्बी परम्परा मिलती है, यथा-गुड़ा अजबा, गुड़ा दुरजण, गुड़ा भोपत, गुड़ा भोप, गुड़ा मोखमसिंह, गुड़ा केसरसिंह, गुड़ा रामसिंह, गुड़ा शूरसिंह, गुड़ा रघुनाथसिंह, गुड़ा प्रेमसिंह, गुड़ा महकरण, गुड़ा दुर्गा आदि । ऐसी सम्भावना है कि ये गांव जिन राजपूतों को सामन्त काल में जागीर में मिले, उन्हीं राजपूत वीरों के नाम से इन गांवों का नामकरण हो गया।
___ इन गांवों में राजस्थान में निवास करने वाली प्रायः समस्त जातियाँ मिल जाती हैं, जिनमें ओसवाल -महाजन, राजपूत (अधिकतर-कू पावत, राठोड़), चांपावत, चौधरी, कारीगर, श्रीमाली, माली, ढोली, राईका, रेबारी, गाड़ी लोहार, सोनी, कुम्हार, तेली, गाँछी, धोबी, साधु, मुसलमान, नाथ, देशांतरी, बावरी, भांबी, कामड़, हरिजन, सरगड़े, कलाल, लखारा, खटीक, नाई, मोची, वारी, जटिया, कायस्थ, ब्राह्मण आदि मुख्य हैं।।
इस क्षेत्र की आबादी मुख्यतः गांवों में ही निवास करती है । कुल आबादी लगभग ढाई लाख के आसपास है। धर्म, तीर्थ व मेले
कांठा क्षेत्र में मुख्यतः हिन्दू धर्म के अनुयायी निवास करते हैं तथा इस धर्म के अधिकांश उप-सम्प्रदायों का प्रभाव यहाँ पर पाया जाता है । सनातन, वैष्णव व शिव उपासक भी यहाँ पर बहुत हैं । नाथ सम्प्रदाय का प्रभाव भी यहाँ पाया जाता है। रामदेव बाबा को मानने वाले भी यहाँ पर बहुत हैं । महादेव, हनुमान, गणेश, चारभुजा, रामदेव के मन्दिर प्रायः हर गाँव में मिल जाते हैं। जैनधर्म के श्वेताम्बर स्थानकवासी, तेरापंथ व मूर्तिपूजक सम्प्रदायों के अनुयायी इस क्षेत्र में बहुतायत से हैं । तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु का तो यह प्रमुख विचरण क्षेत्र रहा है। उनकी जन्मस्थली, दीक्षा-भूमि, अभिनिष्क्रमण व निर्वाण-भूमि होने का श्रेय इसी कांठा क्षेत्र को प्राप्त है। आचार्य भिक्षु ने अपने जीवनकाल में कुल १६ चातुर्मास इसी कांठा क्षेत्र में व्यतीत किये एवं शेष काल में भी विचरणकर धर्म-प्रभावना की।
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