Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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जन साक्षरता और राष्ट्र-निर्माण 0 प्रो० बी० एल० धाकड़, (भू० पू० प्राध्यापक अर्थशास्त्र, उदयपुर विश्वविद्यालय, उदयपुर; ७१, भूपालपुरा, उदयपुर)
शिक्षा स्वयं में एक वरदान है । बालक एक ईश्वरीय देन है। मानव विकास एक मूलभूत आधारशिला है जिस पर किसी राष्ट्र का स्वरूप निर्भर करता है । वह विकास एक दीर्घकालीन प्रत्रिया है और उसमें एक विशाल कार्य
क्रम अन्तनिहित है। ऐतिहासिक सन्दर्भ में शिक्षा मानव शक्ति के उन्नति की आधार भूमिका रही है। रोबर्ट रिसे (Robert Richey) के मत के अनुसार शिक्षा सामाजिक उत्थान की प्रमुख भूमिका रही है। बालक देश की सम्पत्ति है उसको सँवारना और योग्य बनाना एक बड़ी मनोवैज्ञानिक समस्या है, जिसको विकसित देशों ने बड़ी निष्ठा से समाधान किया है । बालक एक नव पौध है जिसको अंकुरित, पल्लवित और पुष्पित करना एक राष्ट्रीय जिम्मेदारी है, आगे ये ही बालक देश का भविष्य उज्ज्वल करते हैं अन्यथा धूमिल भी कर सकते हैं। राष्ट्र की छवि उसी पर आधारित है। यह युग अन्तर्राष्ट्रीयता का युग है, और पृथक्वादी सिद्धान्त समयानुकूल नहीं है।।
. रोबर्ट रिसे का यह भी अभिमत है कि बाल्यावस्था में ही बालक का जीवन निर्मित किया जा सकता है और उसकी विभिन्न सुप्त शक्तियाँ जैसे कला, अभिरुचि व धारणायें, उत्प्रेरणा व मूल्य को प्रभावित किया जा सकता है। इन शक्तियों के निर्माण में सामाजिक शक्तियाँ विशेष दायित्व रखती हैं। प्रत्येक बालक की अपनी आशायें व अपेक्षायें होती हैं और वे विभिन्नता लिये हुए होती हैं, कोई भौतिक समृद्धि का इच्छुक होता है या कोई सामाजिक प्रतिष्ठा का, तथा कोई राजनैतिक प्रभुत्व अथवा व्यावसायिक योग्यता का। वैसे वर्तमान तकनीकी युग में विकास क्रम के अवसर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहते हैं ।
___ भारत की ओर दृष्टिपात करें तो यह एक प्राचीन संस्कृति का देश है, किन्तु वर्तमान युग में इसको निरक्षरता व गरीबी दोनों अधिकांश रूप में विरासत में मिली हैं । साम्राज्यवाद ने इसको झकझोरा है। दोनों ही दृष्टि से इसकी स्थिति सम्मानजनक नहीं है, यह औचित्य है । दोष-तिहाई जनसंख्या इस देश की निरक्षर है और आधी जनसंख्या गरीबी की सीमा की रेखा के नीचे है। अधिकांश भारतवासियों के लिये जीवन जीना और जीवन यापन प्रमुख समस्या बनी हुई है। सम्पन्नता कुछ तक ही निहित है, विपिन्नता सर्वत्र है । क्या इन दोनों समस्याओं का समाधान जन साक्षरता में विद्यमान है, यदि है तो इसमें अत्युक्ति नहीं है ?
गरीबी और निरक्षरता दोनों अभिन्न हैं और विषाक्त चक्र से जुड़े हुए हैं । इनको तोड़ना नितान्त आवश्यक है। सही शिक्षा ही एक मात्र उपाय है जो जन समुदाय में सामाजिक जागरूकता का संचार कर सकती है और समाज का नवीन अभ्युदय संभावित हो सकता है।
जापान का ज्वलन्त उदाहरण हैमारे समक्ष है। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में मेजी युग से साक्षरता अभियान प्रारम्भ किया गया और उसमें इतनी गति दी कि राष्ट्र आज शत-प्रतिशत शिक्षित है। शिक्षा विकास और संस्कृति की दृष्टि से एशिया में सर्वोच्च स्थान के साथ, विश्व के प्रमुखतम देशों में अपना स्थान रखता है। जापान के
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