Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
जन साक्षरता और राष्ट्र-निर्माण
११३
-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-...................
.......................
.
.
....
लोगों की संकल्पता, क्रियात्मकता और देश-प्रेम एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करता है। लेखक ने जापान में स्वयं अनुभव किया। भारत भी इस ओर उन्मुख अवश्य है।
समस्या भारत में दुहरापन की व्यवस्था है। ग्रामीण और शहरी अंचलों में मूल्यों तथा जीवन उद्देश्यों में बड़ा अन्तर है। समष्टिगत जन-चेतना में बहुत कमी है। आज कितने प्रतिशत लोग हैं जो देश-प्रेम से प्रेरित हैं और उसके जीवन के साथ अपना जीवन मिलाकर चलते हैं, मुश्किल से बीस प्रतिशत भी हों। वस्तुस्थिति यह है कि जीवन में परम्परागत जीवन की जड़ता अधिक दृष्टिगोचर होती है, शिक्षा ही एक मात्र माध्यम है जिसके द्वारा नवपरिवर्तन संभावित हो सकता है । वर्तमान में जो दोष समाज में पाये जाते हैं वे क्षुद्र राजनैतिक परिवेश के कारण बाहरी आवरण है। साक्षरता आन्दोलन की क्रियान्विति में अत्यधिक व्यय समाहित है। वह केवल राज्य के द्वारा सम्भव नहीं हो सकता, इसमें जन सहयोग भी पूरा अपेक्षित है। तब शिक्षा कार्य व आर्थिक विकास दोनों समानान्तर रूप ले सकते हैं।
शिक्षाविद् जे० डी० सेठी का यह अभिमत है कि शिक्षा एक तटस्थ तत्त्व नहीं है अपितु त्वरित तत्त्व है। उनकी यह मान्यता है कि शिक्षा पद्धति सामाजिक-आर्थिक तन्त्र का प्रतिबिम्ब है। शिक्षा की बाध्यतायें ही समय तथा तकनीकी की चुनौतियों का सामना कर सकती हैं। शिक्षा एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या है और यूनेस्को (Unesco) उससे सम्बद्ध है। शिक्षा संकट का अर्द्ध विकसित देशों में अधिक प्रभाव है। भारत भी उस संकट से कम प्रभावित नहीं है, क्योंकि विश्व की गरीब जनसंख्या का चालीस प्रतिशत इस देश में निवास करता है।
गरीबी और निरक्षरता दोनों संलग्न होने से आम दृष्टिकोण में निराशावादी और निष्क्रियता की भावना अधिक घर कर गई है । अभी भी देश के भीतरी भाग प्राचीन व्यवस्था के जीते-जागते उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। परिवर्तन के अंश नवीनता को समर्शित नहीं कर सके हैं। इस युग में रहना है तो उसी परिवेश में जीना पड़ेगा, तब भारत विश्व समुदाय में समुचित स्थान प्राप्त कर सकता है। गहन क्षेत्रीय योजना के माध्यम से साक्षरता तथा कार्यात्मकता का समन्वित प्रयास आगे के मार्ग को प्रशस्त कर सकता है और वही लोक शिक्षण है। लोक शिक्षण से न केवल अज्ञानता व असाक्षरता ही दूर होती है, अपितु सम्बद्ध समस्याओं से प्रेरित जागृति का संचार स्वाभाविक होता है।
संगठित ज्ञान व्यक्तिविशेष की वह शक्ति है जिसके द्वारा अपने क्रिया-कलापों में अनवरत सुधार लाया जा सकता है । कार्य-प्रणाली की परिधि इतनी व्यापक हो चुकी है कि जीवन क्रिया के विकास में अधिक सीमा निहित है। मानसिक विकास एक सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि है जिसके द्वारा प्रतिभा उजागर होती है और जीवन सुखमय बनता जाता है, जिससे पूर्व की पीढ़िये वंचित रही हैं।
यूरोपियन पुनरुत्थान और फ्रान्स की क्रान्ति ने औद्योगिक क्रान्ति तथा लोकतन्त्र को जन्म दिया है। व्यक्तिवाद ने गहरी जड़ें जमाई हैं । आज व्यक्ति विकास की चरम सीमा की ओर उन्मुख है। मानव मस्तिष्क ने चकित कर दिया है कि आज वह अन्तरिक्ष में अपना प्रभुत्व स्थापित करने जा रहा है। भारत भी इस श्रेणी में आ गया है । अनुसन्धान करने वाली ऐसी विलक्षण प्रतिभायें जनजीवन से ही उभरती हैं और निखार पाती हैं । किसी वर्ग विशेष की बपौती नहीं हैं, प्रतिभायें देशव्यापी बिखरी पड़ी हैं, आवश्यकता है सुप्त प्रतिभाओं को उभारना । रूस में ऐसी प्रतिभाओं को सर्वाधिक सुविधायें उपलब्ध कराई जाती हैं और उनको सर्वोच्च स्थान देते हैं । ये देश के लिये वरदानस्वरूप हैं। भारत का शिक्षित बौद्धिक क्षमता के स्तर में समान दर्जा रखता है और इस देश में प्रतिभायें बिखरी हुई हैं। इस प्रकार की सम्भाव्यतायें अधिक विकसित व संयोजित होने पर राष्ट्र निर्माण सशक्त बनता है। गरीबी के अभिशाप से शीघ्र मुक्ति मिल सकती है और राष्ट्र स्वयं-स्फूर्ति अवस्था की ओर गतिमान होता है । इसके लिए जन शिक्षा क्षेत्र एक उर्वर भूमि है, जिसमें से देश के महान मस्तिष्क प्रस्फुटित होते हैं।
दृष्टिकोण किसी समुदाय के आर्थिक अभ्युत्थान में विभिन्न शक्तियाँ कार्य करती हैं। क्रियात्मक अनुभव बालक और
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org