Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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जैन आचार दर्शन : एक मूल्यांकन : १४५ .
से विश्लेषण करें तो हम उनके मूल में कहीं न कहीं जैन दर्शन में प्रस्तुत कषायों एवं नोकषायों (आवेगों और उपआवेगों) की उपस्थिति ही पाते हैं । जैन आचार दर्शन कषाय-त्याग के रूप में मनोजगत के वैषम्य के निराकरण का सन्देश देता है। वह बताता है कि हम जैसे-जैसे इन कषायों के ऊपर विजय-लाभ करते हुए आगे बढ़ेंगे वैसे ही हमारे व्यक्तित्व की पूर्णता का प्रकटन भी होवेगा । जैन दर्शन में साधकों की चार श्रेणियाँ मानी गई हैं । जो इन पर क्रमिक विजय को प्रकट करती है। इनके प्रथम तीव्रतम रूप पर विजय पाने पर साधक में यथार्थ दृष्टिकोण का उद्भव होता है। द्वितीय मध्यम रूप पर विजय प्राप्त करने से साधक श्रावक या गृहस्थ उपासक की श्रेणी में आता है । तृतीय अल्प रूप पर बह आत्मपूर्णता को प्रकट कर श्रामण्य को प्राप्त कर लेता है। कषायों की पूर्ण समाप्ति पर एक पूर्ण वीतराग व्यक्तित्व का प्रकटन हो जाता है । इस प्रकार जैन आचार दर्शन कषाय के रूप में हमारी मानसिक विषमताओं का कारण प्रस्तुत करता है और कषायजय के रूप में मानसिक समता के निर्माण की धारणा को स्थापित करता है।
प्रत्येक व्यक्ति यह अपेक्षा करता है कि उसका जीवन शान्त एवं सुखी हो। लेकिन यदि हम मानव-मन की अशान्ति और दुःख के कारणों को जानना चाहें तो हम यह पाते हैं कि उनके मूल में हमारे मानसिक तनाव या मनोवेग ही हैं । मानव-मन की अशान्ति एवं उसके अधिकांश दुःख कषायजनित हैं। अतः शान्त और सुखी जीवन के लिए मानसिक तनावों एवं मनोवेगों से मुक्ति पाना आवश्यक है । क्रोधादि कषायों पर विजय-लाभ करके ही हम शान्त मानसिक जीवन जी सकते हैं । अतः मानसिक वैषम्य के निराकरण और मानसिक समत्व के सृजन के लिए हमें मनोवेगों से ऊपर उठना होगा । जैसे-जैसे हम मनोवेगों या कषायचतुष्क से ऊपर उठेंगे वैसे-वैसे ही सच्ची शान्ति का लाभ प्राप्त करेंगे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन आचार दर्शन जीवन से विषमताओं के निराकरण और समत्व के सृजन के लिए एक ऐसी आचार विधि प्रस्तुत करता है जिसके सम्यक् परिपालन से सामाजिक और वैयक्तिक दोनों ही जीवन में सच्ची शान्ति और वास्तविक सुख का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
वैषम्य निराकरण के सूत्र
विषमताएं
विषमताओं के निराकरण के सिद्धान्त
निराकरण का
परिणाम
. पुरुषार्थ चतुष्टय
से सम्बन्ध
वैषम्य
१. आर्थिक वैषम्य अपरिग्रह (परिग्रह का
साम्यवाद
अर्थपुरुषार्थ परिसीमन)
(समवितरण) २. सामाजिक अहिंसा
शान्ति एवं अभय
धर्म (नैतिकता) (युद्ध-संघर्ष समाप्ति)
पुरुषार्थ ३. वैचारिक अनाग्रह
समाधि (वैचारिक
धर्म और मोक्ष वैषम्य (अनेकान्त)
समन्वय)
पुरुषार्थ का समन्वय ४. मानसिक अनासक्ति
आनन्द
मोक्ष पुरुषार्थ वैषम्य
वीतरागावस्था इन निराकरण के सूत्रों के मूल्यों और उनके परिणामों का विस्तृत विवेचन पूर्व में किया जा चुका है। संक्षेप में जैन आचार दर्शन द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त वैषम्य निराकरण के सभी सूत्र सामाजिक एवं वैयक्तिक जीवन में समत्व, शान्ति एवं सन्तुलन को स्थापित कर व्यक्ति को दुःखों एवं विषमताओं से मुक्त करते हैं।
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