Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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विभिन्न दर्शनों में योगजन्य शक्तियों का स्वरूप
औपपातिक सूत्र का लब्धि सम्बन्धित वर्गीकरण इससे भिन्न है। गणधरत्व, पूर्वरत्व, अर्हलब्धि, चक्रवतित्य, वलदेवत्व, वासुदेवत्व, तेजोलेश्या, आहारक, गीतले और पुलाक लब्धि का उल्लेख प्रस्तुत वर्गीकरण में नहीं है। इनके स्थान पर मनोवली, वचनवली, कायवली, पटबुद्धि, विद्याधरत्य, आकाशपातित्व सब्धियों का विशेष उल्लेख है। और मधु पिराखव इन तीनों लब्धियों की परिगणना विशेषावश्यकमाध्य में कमांक उन्नीस में सम्मिलित है। पपातिक में तीनों के क्रमांक भिन्न-भिन्न है।
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इनों में अधिकांश लब्धियाँ अत्यन्त विस्मयकारी हैं जो कार्य शीघ्र संचालित विशाल यन्त्रों से नहीं होता यह कार्य सम्पन्न व्यक्ति के अंगुलिनिर्देश का खेत है। अकालवर्धा, स्वर्ण-रत्न आदि की वर्षा, पतझड़ में वसन्त की बहार, नाना रूपों की रचना, विविध परिधान और पकवान योगी के चिन्तन मात्र से पलक झपकते ही निष्पन्न हो जाते हैं । योगियों की इस असाधारण क्षमता को लब्धियों की अर्थ विवेचना में अधिक स्पष्टता से समझा जा सकता है।
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अवधि लब्धि से बिना इन्द्रिय-सहायता के भी दूरस्थ पदार्थों को जानने की तथा केवल लब्धि से अतीतअनागत को जानने की क्षमता प्रकट होती है ।
B+B+C+6
(१) मनोबली (२) वचन (२)
मनोज वचनबल कावत इन तीनों धियों के स्वामी प्रभूत शक्तिवर होते हैं। मनोवती अनन्ता स्थिरता के धारक, वचनवली प्रतिज्ञात वचन को निर्वहन करने में समर्थ और काबली अम्लानभाव से एक वर्ष तक क्षुवा और पिपासा को सहन करने में अपार धृति सम्पन्न होते हैं"।
ये साधक मन, वचन और काय स्पर्श से वरदान तथा अभिशाप देने का अद्भुत सामर्थ्य रखते हैं ।
जेष्म जल विप्र आमलब्धि से योगी का श्लेष्म, स्वेद,
पण बिन्दु हस्तस्पर्श तथा सर्वोपधि लब्धि से केश, नख, लोश, त्वचा सब कुछ शीघ्र फलदायी औषध का काम करते हैं ।
कोष्ठ बुद्धि, बीज बुद्धि, पट बुद्धि, पदानुसारी बुद्धि इन चारों लब्धियों का सम्बन्ध मानव की सुविकसित मेधा शक्ति से है।
कोष्ठ (कोठा) में निहित धान्य की तरह प्राप्त श्रुतसम्पदा को सुरक्षित रखना तथा सदा-सदा के लिए उसको स्मृतिट में धारण किए रहना, बीज की तरह एक अर्थ से सहस्रों अर्थों को विकास देना, विविध पत्रपुष्पों के धारक पट की तरह सहस्रों वचन प्रयोगों को सद्यः ग्रहण कर लेना तथा एक पद से सहस्रों पदों को जान लेना क्रमश: कोष्ठ-बुद्धि, चीज बुद्धि, पट बुद्धि एवं पदानुसारी बुद्धि लब्धि का परिणाम है ।
१. औपपातिक टीका, पु० ७६. २. औपपातिक टीका, पृ० ७७. २. औपपातिक टीका,
०७८.
संभिन्न श्रोता -- इस लब्धि में सभी इन्द्रियों का कार्य एक ही इन्द्रिय से किया जा सकता है। एक ही स्पर्शेन्द्रिय से रूप, रस, गन्ध, शब्द सभी को स्पर्श के साथ-साथ ग्रहण कर लिया जाता है। इसी प्रकार जीभ, कान, नाक और आँख से देखना, सुनना, चखना, सूंघना और स्पर्शानुभूति करना सब कुछ हर इन्द्रियों से शक्थ हो जाता है । इस लब्धि का उल्लेख जैन आगमों में ही पाया जाता है ।
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ओरालय, मधुराख, सलिल इन तीनों लब्धियों से सम्पन्न साधक के वचन प्रयोग में क्रमशः दूध एवं मधु बिन्दु जैसा मिठास और घृत जैसा स्नेह टपकता है ।
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