Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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विभिन्न दर्शनों में योगजन्य शक्तियों का स्वरूप - साध्वी श्री संघमित्रा (युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी की शिष्या)
तप एवं ध्यान की प्रक्रिया का परिणाम आत्म-नर्मल्य है। निर्मलता के उच्चस्तरीय आरोहण क्रम में आश्चर्यजनक, अलौकिक शक्तियों का अभिजागरण होता है। आत्मा के इस सामर्थ्य विशेष को पातञ्जल योग दर्शन में विभूति,' श्रीभागवत महापुराण में सिद्धि', दिगम्बर साहित्य में ऋद्धि एवं श्वेताम्बर साहित्य में लब्धि संज्ञा से अभिहित किया गया है। आगम तथा आगम के व्याख्यात्मक ग्रन्थों में लब्धि सम्बन्धी नाना उल्लेख प्राप्त हैं। विशेषावश्यक भाष्य में लब्धि के अट्ठाईस प्रकार हैं:१. आमर्शोषधि लब्धि २. संभिन्न श्रोता लब्धि
३. विप्रौषधि लब्धि ४. श्लेषमौषधि लब्धि ५. जल्लोषधि लब्धि
६. सर्वोषधि लब्धि ७. अवधिज्ञान लब्धि ८. ऋजुमति लब्धि
९. विपुलमति लब्धि १०. चारण लब्धि ११. आशीविषय लब्धि
१२. केवलित्व लब्धि १३. गणधरत्व लब्धि १४. पूर्वधरत्व लब्धि
१५. अर्हत् लब्धि १६. चक्रवर्तित्व लब्धि १७. बलदेवत्व लब्धि
१८. वासुदेवत्व लब्धि १६. क्षीर, मधु सपिरास्रव लब्धि २०. कोष्टक बुद्धि लब्धि २१. बीज बुद्धि लब्धि २२. तेजोलेश्या लब्धि २३. आहारक लब्धि
२४. शीतललेश्या लब्धि २५. वैकुविक देह लब्धि २६. पदानुसारी लब्धि
१७. अक्षीण महानसिक लब्धि २८. पुलाक लब्धि
१. पातञ्जल योग दर्शन विभूतिपाद-३. २. श्री भाग० महा० ११।१५।१. ३. गुणप्रत्ययो हि सामर्थ्य विशेषो लब्धिः । -आ० म० १ अ०. ४. भगवती शतक ८।२।३१६.
आमोसहि विप्पोसहि खेलोसहि जल्लोसहि चैव । सम्वोसहि संभिन्ने ओ हि रिउ विउलमइ लद्धी ॥१५०६॥ चारण आसीविस केवलिय गणहारिणो य पुव्वधरा । अरहंत चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा य ॥१५०७।। खीरमहुसप्पि आसव, कोट्ठय बुद्धि पयाणुसारी य । तह बीयबुद्धि तेयग आहारग सीय लेसा य ॥१५०८।। वेउविदेहलद्धी अक्खीण महाणसी पुलाया य । परिणाम तववसेणं एमाई हुंति लद्धीओ ॥१५०६।।-विशे० भा०
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