Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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ब्रह्माण्ड : आधुनिक विज्ञान और जैन दर्शन
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नियम अन्तरिक्ष में लागू कर कोई नियम या सूत्र प्राप्त करना सारहीन है । वास्तविकता यह है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड इतना प्राचीन व विस्तृत है कि वह किसी मापे जा सकने वाले यन्त्रों की परिधि में नहीं आता।
अन्तरिक्ष निरीक्षण के यन्त्र आधुनिक विज्ञान की देन हैं। ऐतिहासिक व पूर्व ऐतिहासिक काल में ऐसे यन्त्रों का अभाव था । सम्भवतः साधारण यन्त्र भी नहीं थे फिर भी उस युग में भारतीय मनीषियों के अन्तरिक्ष के सूक्ष्म रहस्यों का अनावरण किया। नंगी आँखों से ही उन्होंने आज के श्रेष्ठ यन्त्रों की पकड़ में न आने वाले अन्तरिक्ष स्थित पिण्डों के आकार, गतियाँ, दूरियाँ, रूप, रंग आदि का इतना सही विवरण प्रस्तुत किया कि वे चुनौती से परे हैं। विश्व की उत्पत्ति व विस्तार के बारे में उनका चिन्तन इतना तर्कसंगत व स्पष्ट है कि विज्ञान के विवादास्पद सिद्धान्त हास्यास्पद लगते हैं । यन्त्रों के अभाव में शताब्दियों पूर्व अन्तरिक्ष का गहन अध्ययन किस प्रकार सम्भव हुआ? क्या यह सम्भव नहीं कि उस युग में ऋषि-मुनियों की अतीन्द्रिय शक्तियों के माध्यम से अदृश्य-लोक का अनावरण हुआ होगा?
ब्रह्माण्ड रचना, उत्पत्ति एवं विस्तार का जैन साहित्य में विस्तार से उल्लेख मिलता है। ब्रह्माण्ड का आकार, क्षेत्रफल, उत्पत्ति, आयु, विस्तार व ज्योतिपिण्डों की गतियाँ, उनके मार्ग आदि मानचित्रों के साथ उपलब्ध हैं। जैन साहित्य स्थित ब्रह्माण्ड विज्ञान का अवलोकन करें और इसका मूल्यांकन करें इसके पूर्व ब्रह्माण्ड सम्बन्धी आधुनिक सिद्धान्तों का संक्षिप्त परिचय आवश्यक है। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, आयु, रचना व विस्तार के बारे में भिन्न-भिन्न वैज्ञानिक मत है। उत्पत्ति व आयु सम्बन्धी दो विपरीत विचारधारा निम्न प्रकार हैं
(१) ब्रह्माण्ड का आरम्भ निश्चित है-अर्थात् अतीतकाल में किसी एक समय में सकल ब्रह्माण्ड अस्तित्व में आया एवं भविष्य में किसी एक दिन इसका अन्त हो जायगा।
(२) ब्रह्माण्ड अनादि व अनन्त है। अतीतकाल में न तो कभी इसकी उत्पत्ति हुई न कभी अन्त ही होगा। यह शाश्वत अजर-अमर है।
(i) ब्रह्माण्ड का निश्चित आरम्भ मानने वाले ज्योतिविदों में माउण्ट विलसन वेधशाला के डा० एडविन हबल का मत है कि आज से करीब दो सौ करोड़ वर्ष पूर्व वर्तमान ब्रह्माण्ड अस्तित्व में आया। तब सभी ज्योतिपिण्ड घनीभूतरूप में एक ही स्थान पर एक पिण्ड के रूप में विद्यमान थे। उस पिण्ड में एक महाविस्फोट हुआ है और पिण्ड स्थित समस्त पदार्थ चारों ओर छितराने लगा। छितराने की वह क्रिया आज भी जारी है। पदार्थ ज्योतिर्मालाओं (आकाश-गंगाओं) के रूप में अत्यन्त तीव्र गति से आज भी शून्य में बिखरता जा रहा है। वाशिंगटन विश्वविद्यालय के ज्योतिर्विद डा. जार्जगेमो का मत है कि आज से करीब ५० करोड़ वर्ष पूर्व ब्रह्माण्ड का केन्द्रीय स्थल समजातीय व मौलिक वाष्प का कल्पनातीत ताप का भण्डार था। उसका तापमान कम होने से धीरे-धीरे ठोस पदार्थों का निर्माण हुआ तथा ग्रह-नक्षत्र आकाश-गंगाएँ अस्तित्व में आईं। बेल्जियम के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एबोलिमेत्र द्वारा प्रस्तावित सिद्धान्त के अनुसार ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एक विशाल मौलिक अणु से हुई। इस अणु में विस्फोट होने से पदार्थ बिखर कर फैलने लगा एवं आज भी फैल रहा है। केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक प्रो० मार्टिन रीले का मत भी लगभग इसी प्रकार है।
विश्व की उत्पत्ति का निश्चित प्रारम्भ बताने में कुछ भौतिक सिद्धान्त भी सहायक हैं। यूरेनियम धातु से निरन्तर प्रकाश किरणों का विकीरण होता रहता है, यह सभी को ज्ञात है। इस धातु का अध्ययन करने से पता चला कि यह आज से करीब २० अरब वर्ष पूर्व अस्तित्व में आई। नक्षत्रों के आन्तरिक भागों में स्थित तापप्रणालियाँ जिस तीव्रता से पदार्थ को प्रकाश में परिणत करती है उससे अनुमान लगाया गया है कि अधिकांश तारों की आयु २० अरब प्रकाश वर्ष है। तीव्र गति से विचरण करने वाली आकाश-गंगाओं के आधार पर भी इस निष्कर्ष पर पहुँचा गया है कि ब्रह्माण्ड का प्रारम्भ लगभग बीस अरब वर्ष पूर्व हुआ होगा।
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति व आयु के सम्बन्ध में वैज्ञानिकों ने जो भी सिद्धान्त प्रस्तुत किये हैं उनमें हर सिद्धान्त यह स्वीकार करता है कि वर्तमान ब्रह्माण्ड अस्तित्व में आने के पूर्व कोई पदार्थ पहले से ही विद्यमान था-चाहे वह
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