Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
कांठा के तेरापंथी तीर्थ (१)
भिक्ष जन्मस्थली-कंटालिया - श्री शान्तिलाल वैष्णव 'योगेश', एम० काम०, एम. एड०, सी० लिब. एस-सी.
(पुस्तकालयाध्यक्ष--श्री सुमति शिक्षा सदन, उ० मा० विद्यालय, राणावास) मध्य-पश्चिम अरावली की सुरम्य उपत्यकाओं में बसा एक छोटा लेकिन आत्मनिर्भर पाली जिले में सोजत रोड से १० मील पूर्व में स्थित श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सम्प्रदाय के आद्य प्रवर्तक आचार्य श्री भिक्षु की जन्मस्थली कंटालिया तेरापंथ सम्प्रदाय के प्रमुख तीर्थों में से एक तीर्थ के रूप में जोधपुर रियासत का एक कस्बा है। तेरापंथ का शीर्षस्थ तीर्थ होने के नाते इसके ऐतिहासिक महत्त्व के साथ-साथ आध्यात्मिक महत्व भी सवाया हो जाता है। एक जनश्रुति से उसके महत्त्व एवं ऐतिहासिकता की प्रामाणिकता स्पष्टतः सिद्ध हो जाती है
कांठा में कंटालियो, मारवाड़ में पाली।
गोडवाड़ में घाणेराव, आड़बले में बाली ॥ कंटालिया ग्राम समय विशेष के साथ-साथ घटित घटनानुसार भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है, जैसेकंटालिया, नाथजी का खेड़ा, कंचनपुरी एवं भिक्ष नगर ।
स्थापना एवं ऐतिहासिक मलक कंटालिया ग्राम की स्थापना आज से लगभग १२०० वर्ष पूर्व संवत् ८३५ में राजसिंह हरियाहूल ने की। प्रारम्भ में यहाँ नाथों की जागीरी थी। जिसे नाथजी का खेड़ा नाम से जाना जाता था। उस समय इन नाथों पर तुर्कों ने हमला कर दिया । इन तुर्कों का मुकाबला नाथों एवं हल जाति, जो उस समय की खूखार एवं युद्धप्रिय राजपूत जाति के रूप में मशहूर थी, दोनों ने मिलकर किया। फिर भी तुकं इन दोनों की शक्ति से कहीं ज्यादा ताकतवर थे । देखते ही देखते तुर्कों ने नाथों एवं हूलों को मौत के घाट उतारना प्रारम्भ कर दिया । जनश्रुति के अनुसार नाथों के स्वामी एवं इष्टगुरु नाथजी ने अपने आध्यात्मिक एवं आत्मिक बल से भवानी माता की आराधना कर उसे प्रसन्न किया अतः उसने भंवर मक्खियों (मारवाड़ी में भवानियों) के रूप में क्रुद्ध होकर तुर्कों को अपने जहरीले डंक-बाणों से त्रस्त कर युद्धस्थली से बाहर भाग खड़े हो जाने को मजबूर कर दिया। जहरीली मक्खियों के जहरीले डंक-बाणों का जहर शान्त करने के लिए युद्धस्थली से कुछ ही दूर स्थित एक पानी के नाडे में गिर-गिरकर अपने आपको समाप्त कर दिया । उसी नाडी को आज तुर्क-नाडी के नाम से जाना जाता है।
अन्ततः नाथों एवं इलों की विजय हुई । नाथजी ने राजसिंह नाम के हरियाहूल राजपूत को उसकी युद्धपराणयता एवं दक्षता से प्रभावित होकर नाथजी के खेड़े का राजा घोषित कर दिया। हरियाहूल राजसिंह ने गद्दी पर बैठते ही नाथजी के खेड़े का नाम बदलकर कंटालिया रख दिया। तत्पश्चात् कंटालिया गुर्जरों, उदावतों, माघावतों एवं कूपावतों के शासनाधीन रहा । यहाँ के ठाकुर कूपावत राठौड़ हैं । ये जोधपुर राज्य के संस्थापक राव जोधा के भाई अखेराज के वंशज हैं। कंटालिया की यह जागीर जोधपुर के महाराजा जसवन्तसिंह प्रथम ने वि० सं० १७०२ में भावसिंह राठौड़ को दी थी । भावसिंह से वर्तमान ठाकुर दसवीं पीढ़ी में हैं । आजादी के पूर्व इस ठिकाने के अन्तर्गत १२ गाँव जागीर में थे। आसोप और चण्डावल के ठिकानों से इस ठिकाने का भाईपा है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org